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विनेश फोगाट का कुश्ती से संन्यास…..

कल सुबह एक पीड़ादायक और लगभग उत्साहविहीन समाचार आया कि विनेश फोगाट ने कुश्ती से संन्यास ले लिया। हर व्यक्ति को ये अधिकार होता है कि वे अपने बेहतरीन जीवन के लिए बेहतर निर्णय करे। विनेश फोगाट ने भी अपने स्तर पर सोच समझ कर निर्णय लिया होगा। सार्वजनिक जीवन जीने वालो के लिए बहुत सारी बाध्यता होती है और उनसे उम्मीद की जाती है कि वे कोई बड़ा निर्णय लेने की तैयारी में होते है तो अपने परिवारजन, शुभ चिंतकों से सलाह मशविरा जरूर करते है। खिलाड़ियों की बात करे तो वे अपने मामलो में कोच और साथियों से भी चर्चा जरूर करते है। विनेश फोगाट ने जिस तरीके से संन्यास लेने की घोषणा की है वह सुनियोजित न होकर तात्कालिक आवेश में लिया गया निर्णय ज्यादा लगता है।

विनेश फोगाट पिछले कुछ समय से दो मैदानों में मोर्चा सम्हाले हुए थी। एक मैदान राजनीति का था जहा सत्तारूढ़ सरकार से नाता रखने वाले सांसद ब्रज भूषण सिंह (भारतीय कुश्ती संघ अध्यक्ष) के खिलाफत का था।दूसरा , उनके पेशेवर कुश्ती का था जिसमे उन्होंने वजन वर्ग में पिछले कुछ समय से लगातार बदलाव कर  जोर आजमाइश का निर्णय लिया था। 2013से लेकर 2019 तक 48किलोग्राम से लेकर 53किलोग्राम के वर्ग कुश्ती में वे मैट पर उतरी और राष्ट्र मंडल, एशियाई खेलों सहित विश्व कुश्ती प्रतियोगिता में पदक जीत कर खुद को स्थापित किया था। पेरिस ओलंपिक खेलों में 50किलोग्राम वर्ग में विनेश  फोगाट फाइनल में पहुंची थी। खेल के पहले उनका वजन 100ग्राम ज्यादा निकलने के कारण उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया।

अब मामला एक खिलाड़ी के संन्यास का न होकर राजनैतिक दंगल का हो गया है। 1986 में एक फिल्म आई थी”इंसाफ की आवाज”। इस फिल्म में एक राजनीतिज्ञ की भूमिका में कादर खान चौरंगी लाल दो मुखिया की भूमिका में थे। इनका काम हर विषय पर अपनी रायशुमारी  करना था। उधर विनेश फोगाट ने संन्यास की घोषणा की संसद के गलियारे से लेकर इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया में अवसर परस्तों की बाढ़ आ गई। सोशल प्लेटफार्म में पुराने गड़े मुर्दे बाहर आ चुके है। लोगो को विनेश के 100ग्राम वजन बढ़ने पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय साजिश की बदबू सूंघने की शक्ति बढ़ गई है। खेल में राजनीति के सारे दांव पेच लग चुके है। शुक्र है पेरिस में जंतर मंतर नही है अन्यथा कई लोग अब तक बैठ चुके होते।

इन बातों से परे विनेश फोगाट को इतनी जल्दी न तो कुश्ती से हारना था और न ही उम्मीद छोड़नी थी। खेल में हार जीत, चूक, सब होता है। केवल ओलंपिक खेल ही एकमात्र मंच नहीं है जहां असफल हो जाने से सब कुछ खत्म हो जाता है। विश्व कुश्ती, एशियाई खेल, राष्ट्र मंडल खेल जैसे प्लेटफार्म है जहां विनेश फोगाट की चमक और धमक बनी रहती।इसलिए उनको अपने संन्यास पर पुनर्विचार जरूर करना चाहिए। एक मेडल न सही…..

स्तंभकार-संजय दुबे

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