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BOLLY WOOD; गुलज़ार नाबाद 91

नाम में क्या रखा है? अगर गुलाब को गेंदा कह दोगे तो क्या गुलाब की अहमियत कम हो जाएगी? जी कतई नहीं। ये बात निर्देशक पटकथा, संवाद लेखक और गीतकार गुलज़ार को लेकर भी कही जा सकती है।
बहुतेरे लोगों को मुगालता  है कि गुलज़ार जातीय तौर पर  मुसलमान है बतौर उनके नाम के ,लेकिन  मेरा मानना है कि जो व्यक्ति बतौर गीतकार किसी के अंतर्मन में सुकून डाल दे, संतृप्त कर दे, या खलबली मचा दे तो उसका नाम गुलज़ार न होकर समपूरन सिंह कालरा भी होता(है ही) तो कोई फर्क नहीं पड़ता।
गुलज़ार ,आज  91साल के होने जा रहे है। चौंसठ साल से ये व्यक्ति  मुख्यतः अपनी गीत लेखन धर्मिता से देश दुनियां के लोगों  की आत्मा को तृप्त कर रहा है।
ओंकारा फिल्म का ” गाना  बीड़ी जलइले जिगर से पिया” या बंटी  और बबली का  गाना  आंखे भी कमाल करती है  पर्सनल से सवाल करती है” का विन्यास देखे तो लगेगा कि  अपनी उम्र के उतरार्द्ध के पड़ाव में दिल कितना जवान है।
मै हिंदी और उर्दू जुबान पर अधिकार रखने वाले अधिकांश गीतकार और नज्म कारों को जानता हूं पढ़ता हूं । ये पाता हूं कि गुलज़ार जिस मिट्टी के बने है उसका सौंधापन अन्य किसी में बनिस्पत उनके कम है।
प्रकृति से गुलजार इतने जुड़े है कि पहाड़, वादियां, झरना, नदी, पानी, पेड़ रास्ते उनसे छुटे नहीं है। मौसम फिल्म में “दिल ढूंढता है फिर वही फुरसत के रात दिन” सुन लीजिए तबियत मस्त हो जाएगी। गर्मी,  जाड़ा, रात दिन, चांदनी, बर्फ सब एक साथ अनुभूत हो जाएंगे।
दो साल पहले गुलज़ार साहब से जयपुर में रूबरू होने का अवसर मिला था। उनकी आवाज का खरखरापन सुनने को मिला तब ये भी समझ में आया कि वे भुपेंदर और जगजीत सिंह को  क्यों मानते थे।किशोर कुमार को क्यों पसंद करते थे।
मिर्ज़ा ग़ालिब को  पाठक पढ़ा करा करते थे लेकिन ग़ालिब की जिंदगी के अनछुए पहलू को गुलज़ार ने सामने लाया था। नसीरुद्दीन शाह और जगजीत सिंह के साम्य में ” हर एक बात पे कहते हो कि तू क्या है, तुम ही कहो के ये अंजाम जुस्तजू क्या है” सुन लीजिए।मेरा दावा है कि आप अपने इर्द गिर्द ग़ालिब को पाएंगे।घरौंदा फिल्म  का गाना “एक अकेला इस शहर में रात में या दोपहर में “आंख मूंद कर सुन लीजिए आप खुद को सड़क में पाएंगे। भुपेंदर की आवाद का ये जादू गुलजार के शब्दों से होकर गुजरता है।
शब्दों के इस जादूगर की उम्र का ये पड़ाव अंतिम पायदान की तरफ बढ़ता दिखता है लेकिन उनकी रचना धर्मिता आज भी  इक्कीस साल के युवा को  अपने ओर आकर्षित करने की क्षमता रखती है।  गीतों के गुलज़ार “आंधी” जैसी फिल्म  बनाई। इसे इंदिरा गांधी के जीवन का पर्दे पर आना माना गया था । आपातकाल में आंधी?

स्तंभकार- संजयदुबे

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