POLITICS; बहुत कुछ बोलता है ,महाराष्ट्र का नगरीय निकाय चुनाव

2026 के पहिले महीने में देश के आर्थिक राजधानी मुंबई के नगरीय निकाय के चुनाव होने वाले है। दौ करोड़ तीस लाख की आबादी वाले महा नगरनिगम के एक पार्षद का महत्व अनेक राज्यों की सीमित जनसंख्या वाले विधान सभा क्षेत्र के विधायकों से अधिक है। 227पार्षदों वाले मुंबई महानगर निगम में अगले पांच साल मुंबई का राजा या रानी कौन होगा इसका इशारा हाल ही में हुए स्थानीय निकाय के चुनाव में मिले है।
मुंबई, महाराष्ट्र की राजधानी हैं । राष्ट्रीय और महाराष्ट्र के राज्य स्तरीय दल की अलावा अनेक दल, दबाव समूह मुंबई में अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते है। चुनाव चाहे लोक सभा का हो या विधान सभा या फिर त्रि स्तरीय पंचायत चुनाव का इनके नतीजों से रुझान का जरूर पता चलता है।
महाराष्ट्र में बीते बीस महीनों में लोकसभा, विधान सभा चुनाव सहित स्थानीय चुनाव संपन्न हो चुके है। लोक सभा चुनाव में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए लोकसभा सीट जीती थी। विधान सभा चुनाव की बारी आई तो भाजपा और शिवसेना(शिंदे) के गठबंधन ने सफलता के परचम फहरा दिया। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस बन गए। स्थानीय चुनाव में भी भाजपा, शिवसेना( एकनाध शिंदे) सहित एनसीपी(अजीत पवार ) ने तीन चौथाई महाराष्ट्र में कब्जा कर लिया। भाजपा 129,शिवसेना (एकनाथ शिंदे) 51,और एनसीपी(अजित पवार) 35 नगर परिषद नगर पंचायत में जीते है। महाविकास आघाड़ी के कांग्रेस को 35,शिवसेना(उद्धव)9और एनसीपी(शरद पवार) को 7 नगर परिषद/ पंचायत में सफलता मिली है
जनवरी 26 में मुंबई सहित नगरीय क्षेत्रों के निगम और पालिका के चुनाव होंगे , इस चुनाव से दोनों ही गठबंधन की पार्टियों के शहरी क्षेत्र में जनाधार का आंकलन होगा।
सत्तारूढ़ पार्टियों को इस बात का फायदा मिलता है कि जनमानस उनके पक्ष में विकास की संभावना को देख कर झुकता है। इस आधार पर महायुति याने भाजपा,शिवसेना( एकनाथ शिंदे) और एनसीपी(अजीत पवार)का गठबंधन फायदे में रहेगा। दूसरी महाविकास आघाड़ी याने शिवसेना(उद्धव ठाकरे), एनसीपी(शरद पवार) और कांग्रेस का गठबंधन है। ये गठबंधन राज्य में उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बना चुका है और ये भी सही है कि इसके चलते उद्धव ठाकरे को। मुख्यमंत्री पद छोड़ना भी पड़ा था।
महाराष्ट्र की राजनीति में जब तक बाला साहेब ठाकरे थे। वे कट्टर हिंदुत्व के समर्थक थे। उनके चलते मुंबई सहित महाराष्ट्र में शिवसेना उग्र हिंदुत्व का सिद्धांत लेकर अपना वर्चस्व बना चुका था। भाजपा के साथ मिलकर राज्य की सत्ता में भी काबिज रहे। उनके मृत्यु के बाद उद्धव ठाकरे के शिव सेना प्रमुख बनने के बाद हिंदुत्व के मुद्दे से शिवसेना भटकने लगी और कांग्रेस ओर एनसीपी से गठबंधन के चलते धर्मनिरपेक्ष होने पर मजबूर हो गई। इसका खामियाजा भी उद्धव ठाकरे को भुगतना पड़ा। शिवसेना दो फाड़ हो गई और शिव सेना से अलग होकर एकनाथ शिंदे ने भाजपा के साथ हाथ मिलाकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए। इस परिवर्तन के साथ ही शिव सेना (उद्धव ठाकरे) का पतन शुरू हुआ और ऐसा माना जा रहा है कि अगर शहरी निकाय चुनाव में अपेक्षित सफलता नहीं मिलती है तो आने वाला समय शिव सेना (उद्धव ठाकरे) कठिन होगा।
मुंबई ग्रेटर नगरनिगम के 2017 में हुए चुनाव में शिवसेना एक ही पार्टी थी भाजपा के साथ। मिलकर चुनाव लड़ी थी। 84 पार्षद शिवसेना, 82पार्षद भाजपा के थे। शिवसेना की किशोरी पेडणेकर मेयर बनी थी
दूसरी तरफ कांग्रेस के 35,एनसीपी के 9, राज ठाकरे की पार्टी मनसे को 7और एआईएमआईएम को 2सीट मिली थी। इस बार के चुनाव में सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा उद्धव ठाकरे की है। 2017के मुंबई ग्रेटर नगरनिगम चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन कर 84पार्षद जितवाए थे।इस बार भाजपा विपक्ष में है।शिवसेना से टूट कर असली शिवसेना होने का दावा करने वाली शिवसेना(एकनाथ शिंदे) विरोध में खड़ी है। सत्ता में भी यही लोग है। नए साल में देश की आर्थिक राजधानी में मुंबई चा राजा या रानी कौन होगा, देखने लायक बात होगी।
स्तंभकार-संजयदुबे



