राजनीति

अभिमान पार्ट 2…………

1973 में ऋषिकेश मुखर्जी के द्वारा एक फिल्म बनाई गई थी- अभिमान। ये फिल्म 27 जुलाई 1973 को  रिलीज हुई थी। इस फिल्म के रिलीज होने के एक महीने पहले जया भादुड़ी ने अमिताभ बच्चन के साथ 3 जून 1973 को विवाह कर लिया था। हिंदू धर्म के अनुसार विवाह के बाद पति के सरनेम से पत्नी को जाना जाता है। स्वाभाविक रूप से जया भादुड़ी से बच्चन हो गई। भादुड़ी से बच्चन बनने के बाद 1975 में जया बच्चन ने फिल्मों से संन्यास ले लिया। अपवाद स्वरूप 1981 में सिलसिला फिल्म में काम किया। इसके बाद 1998 तक वे पलट कर फिल्मों की तरफ नहीं देखा। 50साल की उम्र में  हजार चौरासी की मां फिल्म में आई। 50 की उम्र में नायिकाओं को मां की ही भूमिका मिलती है सो  फिजा और  कल हो ना हो, और कभी खुशी कभी गम फिल्मों में जया बच्चन मां की भूमिका में दिखी। 

फिल्मों से परे जया बच्चन को मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी से अप्रत्यक्ष चुनाव पद्धति से निर्वाचित होने उच्च सदन राज्य सभा में सदस्य बनाया। 2004 से जया अमिताभ बच्चन (राज्य सभा के वेब साइट पर यही नाम लिखा है) राज्य सभा में है। उनके पति अमिताभ बच्चन प्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धति से लडे जाने वाले लोक सभा चुनाव में 1984 आम चुनाव में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से हेमवती नंदन बहुगुणा को हरा कर चुनाव जीते थे। उनका बहुत ही जल्दी मोहभंग हो गया और उन्होंने लोक सभा सदस्यता से इस्तीफा भी दे दिया।

बात “अभिमान” फिल्म की कर ले। अभिमान फिल्म में एक विख्यात गायक के द्वारा  एक ऐसी लड़की से विवाह होता है जो गायिका है। इस लड़की के गायन को प्रमुखता मिलती है और थोड़े समय में गायिका, गायक पति से ज्यादा विख्यात हो जाती है। पति को पत्नी की ख्याति पचती नही है और क्लेश इतना बढ़ता है कि दोनो के संबंधों में दरार आ जाती है। फिल्मों में सुखद अंत का बाजार है क्योंकि दर्शक खुश होकर घर लौटना चाहता है।

वर्तमान में राज्यसभा में जया अमिताभ बच्चन को इस बात से आपत्ति है कि राज्य सभा के अध्यक्ष द्वारा जया अमिताभ बच्चन को इसी नाम से संबोधित किया जा रहा है। जया अमिताभ बच्चन ने अमिताभ का नाम लिए बगैर अपने को जया बच्चन कहलाना चाहती है। इस बात को लेकर हंगामा इतना बढ़ गया है कि 87 राज्यसभा के सांसद , अध्यक्ष को हटाए जाने की मुहिम चला रहे है।

राजनीति में मूल्य रह नहीं  गया है ये तो देश की जनता देख ही रही है।  जया बच्चन, पढ़ी लिखी महिला है, चौथी बार राज्य सभा की सदस्य है। बीस साल से वे राज्य सभा में है, इतने सालो में नियम तो समझती ही होंगी लेकिन जिस नाम को उन्होंने चुनाव के नामांकन पत्र में दाखिल किया है  यदि उस नाम से परहेज है तो  एक लिखित आवेदन (चाहे तो 50रुपए के स्टांप पेपर में नोटरी से सर्टिफाइड करा कर) राज्य सभा के अध्यक्ष को सौप दे। वे जो नाम चाहे जया भादुड़ी दे या जया बच्चन या और कोई नाम(इसके लिए न्यायिक प्रक्रिया है जिसमे इश्तहार प्रकाशित होता है और उसके बाद सभी दस्तावेजों में नाम परिवर्तित करने की प्रक्रिया पूर्ण कर ली जाती है) चयनित कर सकती है। 

 पिछले कुछ सालों से जया बच्चन ( हम लोग तो लिख सकते हैं) का स्वभाव वैसा नही है जैसा फिल्मी जीवन के दौर में दिखता था। जया भादुड़ी को फिल्म इंडस्ट्री में भाव पूर्ण अभिनय के लिए जाना जाता रहा है।  उन्होंने कभी भी अंग प्रदर्शन नहीं किया इस कारण उन्हें दर्शक अन्य अभिनेत्रियों की तुलना में ज्यादा महत्व दिया। अब की जया बच्चन सार्वजनिक रूप से उद्वेलित दिखाई देती है। उनका बॉडी लैंग्वेज सामान्य नहीं दिखाई देता। व्यवहार में अजीब प्रकार की बेचैनी दिखती है मानो वे खुद से भी रुष्ट है। यही व्यवहार राज्य सभा की कार्यवाही में देखा जा रहा है। उन्हे अमिताभ के नाम जुड़ने से क्यों आपत्ति है, ये समझ से बेहतर की बात है। लगता है वे बदले समय में अभिमान-2 बनाने के फेर में है जिसमें नायिका, नायक के name and  fame होने से  कुंठित हो जाती है और बदला लेने के लिए इस प्रकार के आडंबर रचती है जिससे नायक को खराब लगने लगे। जया बच्चन को चाहिए कि वे अपने व्यवहार को सदन के भीतर और बाहर संयत रखें , खामख्वाह खुद के साथ अमिताभ बच्चन की भी किरकिरी करवा रही है।

स्तंभकार-संजयदुबे

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