राज्यशासन

छत्तीसगढ का राज-काज, ‘राज की बात’

नारायण भोई

बस्तर में दोपहर बाद बैठक ..

आदिवासी बाहुल्य बस्तर में सरकारी अर्ध सरकारी एवं राजनीतिक बैठकें सामान्यतः अपरान्ह बाद नहीं होती हैं। जनसभा भी पूर्वान्ह में होती है। दोपहर बाद बस्तर में बैठकें इसलिए नहीं होती ,क्योंकि आदिवासी बहुत इलाके में शराब- सेल्फी आदि का चलन है। ऐसे में बैठकें सामान्य ढंग से हो पाना मुश्किल हो जाता है। खासकर राजनीतिक पार्टियों की बैठकें दोपहर बाद बहुत ही कम होती है क्योंकि कार्यकर्ताओं को संभाल पाना संभव नहीं हो पाता है। अभी तीन दिन पहाले बस्तर के सर्किट हाउस जगदलपुर में हुई घटना को इसी नजरिए से देखा जा सकता है। मंत्री के स्वागत में कार्यकर्ता शाम को सर्किट हाउस पहुंच चुके थे क्योंकि मंत्री नहीं पहुंचे थे इसलिए संभवत: कर्मचारी भी सर्किट हाउस का रूम नहीं खोल रहे थे और यह बात जब मंत्री तक पहुंची, मामाला बिगड गया था।

अफसर के तेवर
राज्य सरकार के चर्चित विभाग की एक महिला अफसर के तेवर सातवें आसमान पर है। कारण यह है कि पहली बार उन्हें फील्ड में पदस्थापना मिली है और वह भी राजधानी जैसे जगह पर तो पारा चढना स्वाभाविक है। ऐसे में मैडम ने अपना रौब दिखाना भी शुरू कर दिया है । सभी मातहत अफसर कर्मचारियों को टारगेट दे दिया है। हर इलाके के नाके में कम से कम दो गाड़ी रोज पकड़नी है। इसके अलावा रात्रि गश्त करना जरूरी है। हालत यह है कि बड़े-बड़े ठेकेदारों को कंट्रोल करने में कर्मचारियों के पसीने छूट में रहे हैं। राजधानी के ठेकेदारों की पहुंच कहां तक है? संभवत मैडम को नहीं मालूम?

साहब को नए फील्ड की तलाश

आग से जलते हुए इलाके को संभालने के बाद अब साहब ताकतवर बन गए हैं। साहब का काम-काज का स्टाइल ही अलग है। मातहत अफसर कर्मचारियों को फ़टकारना आम बात हो गयी है लेकिन इस जिले की तासीर को वे समझ नहीं पाए हैं। यहां हर गांव में बारूद का ढेर लगा हुआ है। एक चिंगारी की ही जरुरत है। अब तो मंत्रिमंडल में एक और प्रतिनिधि भी मिल गया है। खैर साहब को ज्यादा समय हो गया है। वे चाहते हैं, जल्द से छुट्टी मिल जाए। वैसे वे फील्ड की कप्तानी करना भी नहीं छोड़ना चाहते हैं इसलिए नए मैदान की तलाश में लग गए हैं।

नवाचार का सहारा

अधिकारों की कटौती के बीच साहब ने नवाचार शुरू कर दिया है। नवाचार भी ऐसे कि हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा। फोटो के साथ सुर्खिंंयां भी बटोरते रहो। मसलन साहब ने दर्जन भर से ज्यादा प्रोजेक्ट शुरु कर दिया है। वैसे इसकी अच्छी प्रतिक्रिया हो रही है। प्रोजेक्ट सुर्खिंयां बटोरने में कामयाब हो रही है। हालाकि कर्मचारी इन प्रोजेक्टों से हलाकान हो चुके है। कोई भी योजना स्थाई प्रतीत नहीं हो रही है। कुछ योजनाएं ऐसी है जिसे विभागीय शिविर या कैंप लगाकर पूरा किया जा सकता है। इन योजनाओं की उच्च अधिकारी भी सराहना कर रहे हैं ,यदि सब ठीक-ठाक रहा तो आने वाले दिनों में पूरे राज्य में भी इन योजनाओं को धरातल में उतारा जा सकता है।

कृषि विवि. में फिर भर्त्ती विवाद

लगता है इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय का विवादों से गहरा नाता है। बिना विवाद के कोई काम होता नहीं है। पिछली बार भी जब सहायक प्राध्यापकों की भर्ती हुई थी काफी हंगामा हुआ था, लेनदेन का आरोप भी लगा था, अब कृषि वैज्ञानिकों की भरती की जा रही है और इंटरव्यू के पहले ही शिकवा शिकायत का दौर शुरू हो गया है। दावेदारों से संपर्क कर लेनदेन की बात बताई जा रही है। दिलचस्प बात यह है कि इसकी शिकायत राजभवन तक पहुंच चुकी है और इंटरव्यू शुरू होने के पहले ही स्थगित भी हो गया है। बताते हैं छत्तीसगढी बोली के नाम पर इंटरव्यू में 15 की बजाय 25 अंक कर दिए गए हैं और इस अतिरिक्त 10 अंक में वारा -न्यारा हो सकता है। इसलिए भी शिकायत में बढ़ गई है।

तारीख पर तारीख…

सुबे के मुखिया ने जब पहली कॉन्फ्रेंस किया था तो अफसरों की बल्ले बल्ले हो गई थी इतना ही नहीं अपनी खुशी जाहिर करने के लिए रात को पार्टी भी किया था जाहिर है मुखिया को अनुभव कम था। अब जब दूसरा कॉन्फ्रेंस हुआ तो मुखिया के तेवर को देखकर अफसरों की सिटी-पिटी गुम हो गई। मुखिया ने साफ तौर पर कह दिया कि अब तारीख पर तारीख नहीं चलेगी। मुखिया की चेतावनी से तो कुछेक अफसर शिविर भी लगाना चालू कर दिए है लेकिन कुछ अफसरों पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा है। इससे जहां प्रकरणों के निराकरण के लिए रजस्व न्यायालयों में सुबह से शाम तक भीड़ लग रही है। इतना ही नहीं काम करने के लिए दलालों का सहारा लेना पड रहा है। यह मुखिया के निर्देशों का उलंघन तो है ही बल्कि इसका विपरीत असर सरकार की छवि पर पड़ रहा है। आरोपों से घिरे मंत्री भी अफसरों पर दबाव नहीं बना पा रहे है और इसका खामियाजा किसान और कमजोर तबके के लोग भुगत रहे है, जिन्हें पेशी दर पेशी दफ्तरों का चक्कर काटना पड़ रहा है। 

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