COURT; सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला ‘शादी के बाद महिला को नौकरी से निकालना लैंगिक भेदभाव’,केंद्र को दिए निर्देश
नई दिल्ली,एजेंसी, शादी के बाद किसी भी महिला को नौकरी से निकाल देना लैंगिक भेदभाव और असमानता को दर्शाता है। सेवा नियम के तहत विवाह के कारण किसी महिला की सेवाएं समाप्त करना पितृसत्तात्मक मानदंडों को स्वीकार करना और मानवीय गरिमा को कमजोर करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह कड़ी टिप्पणी पूर्व लेफ्टिनेंट सेलिना जॉन की याचिका पर की है। दरअसल, शादी के कारण सेलिना जॉन को सैन्य नर्सिंग सेवा की नौकरी से बर्खास्त कर दिया था। शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाते हुए केंद्र को जॉन को 60 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है।
किसी भी दलील को स्वीकार करने में असमर्थ
कोर्ट ने कहा कि ‘हम प्रतिवादी की किसी भी दलील को स्वीकार करने में असमर्थ हैं। लेफ्टिनेंट सेलिना जॉन, जो सैन्य नर्सिंग सेवा में एक स्थायी कमीशन अधिकारी थीं, को इस आधार पर रिहा/मुक्त किया जा सकता था कि उन्होंने शादी कर ली है।’
महिला नर्सिंग अधिकारियों पर क्यों लागू होता है यह नियम
माना जाता है कि यह नियम केवल महिला नर्सिंग अधिकारियों पर ही लागू होता था। ऐसा नियम प्रथम दृष्टया स्पष्ट रूप से मनमाना था, क्योंकि महिला की शादी हो जाने के कारण रोजगार समाप्त करना लैंगिक भेदभाव और असमानता का एक गंभीर मामला है। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा, ऐसे पितृसत्तात्मक शासन को स्वीकार करना मानवीय गरिमा, गैर-भेदभाव और निष्पक्ष व्यवहार के अधिकार को कमजोर करता है।
यह आदेश सशस्त्र बल न्यायाधिकरण की लखनऊ क्षेत्रीय पीठ के उस आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार की अपील पर आया, जिसमें जॉन की सेवा से रिहाई को गलत और अवैध बताया गया था। पीठ ने कहा कि न्यायाधिकरण के आदेश में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
साठ लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश
यह नोट किया गया कि उसकी सेवा सेना निर्देश संख्या के अनुसार समाप्त कर दी गई थी। शीर्ष अदालत ने कहा ‘वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, हम अपीलकर्ता (भारत संघ) को आठ सप्ताह के भीतर प्रतिवादी को साठ लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश देते हैं। इसमें जॉन को पिछले वेतन और अन्य लाभों के साथ बहाल करने का निर्देश देते हुए कहा कि मुआवजा पूर्व अधिकारी द्वारा किए गए सभी दावों का पूर्ण और अंतिम निपटान होगा।