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PERSON;छत्तीसगढ़ के पहले अन्तर्राष्ट्रीय कॉमेन्टेटर मिर्जा मसूद, सुभाष स्टेडियम से सियोल ओलिंपिक तक ….

मिर्जा मसूद जी खेल के अन्तर्राष्ट्रीय कॉमेन्टेटर थे। इस हैसियत से तो उनका दर्जा काफी सम्मान वाला था। लेकिन पेशे से वे आकाशवाणी रायपुर के वे उद्घोषक थे जिसमें प्रमोशन के अवसर बहुत कम थे। सो वे उदघोषक पद से रिटायर हो गए थे। वे हाकी की कमेन्ट्री के साथ ही फुटबाल व अन्य खेलों की कॉमेन्टेटरी किया करते थे। मेरी जानकारी में उन्होंने शायद क्रिकेट की कॉमेन्टेटरी कभी नहीं की।

पहली बार मैंने जब उनकी कॉमेन्टेटरी सुनी तो उसमें उनका यह कहना कि “रायपुर के नेताजी सुभाष स्टेडियम से मैं मिर्जा मसूद अपने सहयोगी कॉमेन्टेटर के साथ बोल रहा हूं।“ उनकी यह शुरुआत मुझे काफी आकर्षित करती रही। फिर एक दिन ऐसा भी आया कि मैंने उनके साथ रायपुर के हिन्द स्पोर्टिंग मैदान में यही शब्द बोलने का रोमांच भर अवसर मिला।   

1980 से मेरी आकाशवाणी रायपुर के खेल कार्यक्रमों रुचि बढ़ने लगी थी, सो मैं अपने छोटे भाई सुरेन्द्रपाल सिंह हंसपाल के साथ मैं आकाशवाणी जाने लगा। धीरे धीरे मिर्जा मसूद जी के सानिध्य़ में खेल के कार्यक्रमों के लिए साक्षात्कार, वार्ता और अन्य खेल प्रसारण के कार्यक्रम करने लगा। उनकी आवाज भारी तो थी लेकिन बिल्कुल स्पष्ट थी। उनके व्यक्तित्व में रंगकर्म, नाटक, पटकथा लेखन और निर्देशन भी था। लेकिन कभी भी उन्होंने हमें शायद हमारी खेल के प्रति रुचि को देखते हुए हमें नाटक की ओर मोड़ने का प्रयास नहीं किया। 

मिर्जा मसूद जी के साथ खेल के कार्यक्रम करते करते हम उनकी मुरीद हो गए थे। हमने उन्हें गुरु तो नहीं बनाया क्योंकि हम तो आकाशवाणी के खेल कार्यक्रम शौकिया ही करते रहे। वे विशेष रुप से अकसर ही आकाशवाणी दिल्ली के बुलावे पर देश के कई बड़े हॉकी टूर्नामेंट में हाकी की कमेन्ट्री करने जाते रहे। इसके अलावा भी उन्होंने कई अन्य खेलों की भी कमेन्ट्री।

हमें याद है कि 1988 में सियोल ओलिंपिक में कमेन्ट्री करने के लिए दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल गए थे। वहां उन्होंने देश के लिए हिन्दी में कॉमेन्टरी की जिसे लाखों भारतीयों ने सुना। जब वे कॉमेन्टेटरी कर ट्रेन से रायपुर लौटे तो हम दोनों भाईयों के अलावा हमारे एक दोस्त उनका स्वागत् करने के लिए रायपुर के रेल्वे स्टेशन पहुचे और उनका फूल मालाओं से स्वागत किया। हमारे पास तो न तो कोई कार थी और ना ही कोई कार वाला अमीर दोस्त था। सो हमने एक आटो किया और उसमें फूलों से लदे मिर्जा जी को उनके घर की ओर रवाना किया। 

एक बार मिर्जा मसूद जी के साथ बिलासपुर में आयोजित हाकी स्पर्धा के फाईनल मैच के कव्हरेज के लिए गया। पर बिलासपुर पहुंचते ही मैच पूरा खत्म हो गया था, अंधेरा हो चुका था और पूरी पब्लिक भी वापस जा चुकी थी। मैं चूंकि उनके साथ पहली बार ऐसे कव्हरेज के लिए गया था, सो यह सोच कर डर गया कि खेल तो ही खत्म हो चुका है हम क्या रिकार्डिंग कर पाएगें। मिर्जा जी ने कहा कि कोई बात नहीं है चलो हम रिकार्डिंग के लिए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मध्यप्रदेश पुलिस के आईजी. श्री मोदी के घर चलते हैं। फिर हम आईजी श्री मोदी के घर पुहंचे। श्री मिर्जा ने उनसे अनुरोध किया कि सर हम आते आते लेट हो गए है इसीलिए कार्यक्रम पर समय पर नहीं पहुंच सके, इसीलिए आपने जो बातें स्टेडियम में कही थी वही एक बार फिर से कह दीजिए।

श्री मोदी की आवाज रिकार्ड तो कर ली गई पर उसका उपयोग कैसे होगा मैं यही सोचते हुए रायपुर वापस आ गया। दो दिन बाद सुबह के कार्यक्रम “नगर दर्पण” कार्यक्रम प्रस्तुत करते हुए मिर्जा मसूद ने कहा कि पिछले दिनों बिलासपुर में हुई हाकी प्रतियोगिता संपन्न हुई। कार्यक्रम में विजेता टीम को पुरस्कार देने के बाद कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मध्यप्रदेश पुलिस के आईजी श्री मोदी ने कहा…………..! और मोदी जी की रिकार्डिंग चलने लगी। मैं यह देख कर हैरान और दंग था कि कैसे दक्षता के साथ आकाशवाणी के कार्यक्रम तैयार किए जाते है।  कार्यक्रम का संपादन इतने बढ़िया ढंग से किया गया कि श्रोताओं को यह पता ही नहीं चला की यह रिकार्डिंग उस समय की नहीं जब कार्यक्रम हो रहा था वरन यहा कार्यक्रम पूरा आयोजन खत्म होने बाद का था। मिर्जा मसूद उर्दू के एक अच्छे जानकार और रंगकर्मी थे। जिस तरह से वे कॉमेन्ट्री करने देश- विदेश जाते रहे उन्हें बड़े शहरों में रह कर काम करने के कई अवसर मिले होगें पर वे छत्तीसगढ़ के होकर रहना चाहते थे। 

  * तेजपाल सिंह हंसपाल, पूर्व खेल कॉमेन्टर

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