Uncategorized

SC; सुको की नसीहत-राज्यपालों को किसी बिल पर एक से तीन महीने में फैसला ले लेना चाहिए

नईदिल्ली, तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला राज्य और राज्यपालों के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवादों के समाधान की दिशा में अहम कदम है। शीर्ष अदालत ने एक बार फिर से राज्यपालों की भूमिका स्पष्ट की है। यह फैसला आने वाले वक्त में एक नजीर बनेगा और उम्मीद है कि टकराव के रास्ते से हटकर राज्य सरकारें और राज्यपाल मिलकर काम करेंगे।

तमिलनाडु सरकार को इसलिए सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा था, क्योंकि राज्यपाल ने कई विधेयक लंबे समय से रोक रखे थे और उन्हें राष्ट्रपति के पास भेजा था। कोर्ट ने इसे अवैध और विधिक रूप से त्रुटिपूर्ण बताया। इसी तरह का विवाद पिछले साल केरल में भी हुआ था। तब राज्य की डेमोक्रेटिक फ्रंट सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी कि तत्कालीन राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कई बिल दो साल तक लटकाए रखे और फिर उसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया।

देश की शीर्ष अदालत पहले भी कह चुकी है कि राज्यपाल विधानसभा में पारित किसी विधेयक को हमेशा के लिए अपने पास रोक कर नहीं रख सकते। उन्हें उस पर फैसला लेना ही होगा। अफसोस कि पिछली किसी नसीहत का कोई असर नहीं दिखा। इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट को ताजा मामले में वही बातें फिर से दोहरानी पड़ी हैं। फैसले का यह बिंदु बेहद अहम है कि राज्यपालों को किसी बिल पर एक से तीन महीने में फैसला ले लेना चाहिए।

टकराव की वजह: देश में राज्य और राज्यपालों के बीच विवाद का इतिहास बहुत पुराना है। मामला केवल विधेयकों को मंजूरी देने तक नहीं है। नियुक्तियां, निर्णय, अधिकार और शक्तियां – कई मुद्दों पर दोनों में टकराव होता रहा है। हाल में इसका सबसे बड़ा उदाहरण पश्चिम बंगाल और दिल्ली रहे। बंगाल की ममता बनर्जी सरकार की पहले जगदीप धनखड़ और अब सीवी आनंद बोस के साथ कभी पटरी नहीं बैठी। वहीं, दिल्ली में AAP सरकार के कार्यकाल में एलजी के साथ कई बार मतभेद हुए।

राजनीति न हो: साल 1959 में गवर्नर की रिपोर्ट पर केंद्र ने केरल की नंबूदरीपाद सरकार को बर्खास्त कर दिया था। वह पहला मामला था, और जब से राज्यपालों की नियुक्तियां राजनीतिक होने लगीं, टकराव बढ़ने लगा।

परंपरा का पालन: नवंबर 2023 में पंजाब सरकार और राज्यपाल के बीच हुए विवाद की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बेहद सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था, ‘हमारा देश स्थापित परंपराओं पर चल रहा है और उनका पालन किया जाना चाहिए।’ राज्य का संवैधानिक प्रमुख होने के नाते परंपराओं की सुरक्षा राज्यपाल की ज्यादा जिम्मेदारी है। संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच विधायी, कार्यकारी और वित्तीय शक्तियों का स्पष्ट विभाजन किया गया है। राज्यपाल को इनका अनुपालन करना चाहिए।

Related Articles

Back to top button