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 खेल खिलाड़ी और फिल्में ………….

 26 जुलाई 2024 से फ्रांस की राजधानी पेरिस में वे ओलंपिक खेलों की शुरुवात होने वाली है। खेल और खिलाड़ियों के इस महाकुंभ में सारे देशों के दस हजार से अधिक खिलाड़ी खेलो में पदक के लिए जोर लगाएंगे। हमारा देश भारत भी ओलंपिक खेलों में भाग ले रहा है। भारत में पिछले कुछ वर्षो से क्रिकेट के अलावा भी दीगर खेलो के खिलाड़ियों ने  विश्व स्तर पर अपनी छाप छोड़ी है। इसके चलते फिल्म निर्माताओं और निर्देशकों को लगा कि खेल और खिलाड़ी विषयो पर फिल्मे बनाई जानी चाहिए। इस कारण खेल और खिलाडियों दोनो विषयो पर फिल्मे बन रही है। सफलता और असफलता से परे ये काम निसंदेह साहस का काम है जिसकी खेल भावना के तर्ज पर बधाई दिया जाना चाहिए।

 आम तौर पर खेल पर कम , कोच और खिलाड़ियों के जीवन पर ज्यादा फिल्मे बनती है। इनसे परे खेल भावना कि “जीतो तो गर्व नहीं और हारो तो शर्म नहीं” विषयो पर बहुत फिल्मे बनी है। इस साल दो बड़े कलाकारों को लेकर फिल्म आई पहली थी आर्यन की चंदू चैंपियन, और दूसरी अजय देवगन की मैदान।

 चंदू चैंपियन , चंद्रकांत पेटकर की जीवनी बनी फिल्म है।  चंद्रकांत पेटकर अपने शुरुवाती जीवन में बॉक्सर रहे थे ।भारत पाकिस्तान युद्ध (1965) में उनको नौ गोली लगी थी। वे पैरा ओलंपिक1972 में 50 मीटर फ्री स्टाइल स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीते थे। चंद्रकांत पेटकर ने भारत के राष्ट्रपति के विरुद्ध अर्जुन पुरस्कार न देने के लिए न्यायालय में याचिका लगाने का प्रयास किया। ये बात सरकार तक पहुंची तो 2018 में  चंद्रकांत पेटकर को पद्मश्री  सम्मान दिया गया।

दूसरी फिल्म मैदान, सैयद इकबाल रहीम फुटबाल कोच पर बनी फिल्म है। भारत के फुटबाल खेल का स्वर्णिम इतिहास 1952 से 1962 तक का रहा था। इस अवधि में भारत दो बार एशियाई खेलों के फुटबाल स्पर्धा का विजेता बना।  1956 के ओलंपिक में सेमीफाइनल पहुंचा। इन उपलब्धि के पीछे  कोच सैयद इकबाल रहीम की मेहनत थी। उस दौर में बंगाल का फुटबाल खेल में एकाधिकार था। खिलाड़ी भी यही से होते थे। रहीम ने देश के अन्य भागों से खिलाड़ी लाए तो राजनीति भी हुई। इसका ताना बाना “मैदान” फिल्म में है ।दोनो फिल्में प्रेरणास्पद होने के बावजूद नहीं चल सकी।

 खेल विषयों पर भारत में 1931 से लेकर 1984 तक कोई भी निर्माता निर्देशक साहस नहीं जुटा पाया। 1984 में प्रकाश झा ने हिम्मत कर हिप हिप हुर्रे बनाई। ये फिल्म सराही गई लेकिन व्यवसायिक रूप से सफल नहीं हुई। कालांतर में अव्वल नंबर, दे धन धना धन, दिल बोले हड्डिप्पा, जो जीता वही सिकंदर जैसी  खेल विषय  पर फिल्मे आई ,लेकिन बॉक्स ऑफिस में सफलता नहीं मिली।

2001 में आमिर ख़ान की फिल्म “लगान” आई। एक काल्पनिक कथा में भारत के ग्यारह ऐसे क्रिकेटर्स  खोजे गए जिनका भारतीय क्रिकेट में बड़ा योगदान था। कपिल देव के आल राउंडर की भूमिका में आमिर खान थे। रोजर बिन्नी की भूमिका  में जुत्शी थे। चंद्र शेखर की भूमिका में भी एक अभिनेता था। इस फिल्म को जबरदस्त सफलता मिली । इकबाल (2005) की क्रिकेट पर आधारित फिल्म थी। इस फिल्म को सराहना मिली लेकिन सफलता दूर रही।

2007 में शाहरुख खान अभिनीत फिल्म चक दे इंडिया ने एक बार फिर सफलता के झंडे गाड़े। महिला हॉकी टीम के उत्थान की शानदार कहानी थी जिसमे भारत के गोल कीपर नेगी की काल्पनिक चरित्र में शाहरुख खान जी गए। जन्नत (2008) पान सिंह तोमर (2010), पटियाला हाउस (2011), फेरारी की सवारी, जन्नत,(2012), खेल विषय पर असफल फिल्में थी।

 2013 में राकेश ओम प्रकाश मेहरा मिल्खा सिंह की जिंदगी से जुड़े सच को “भाग मिल्खा भाग” ले रूप में ले कर आए। ये फिल्म खूब चली। फरहान अख्तर ने मिल्खा की भूमिका के साथ पूरा न्याय किया और दर्शको ने भी खूब प्यार दिया। 2014 में महिला बॉक्सर मेरी कॉम की भूमिका में प्रियंका चोपड़ा ने भी शानदार अभिनय कर फिल्म को चला दिया। 2016 का साल  ओलंपिक खेलों का साल था। इस साल अजहर, साला खडूस ,एम एस धोनी, सुल्तान और दंगल फिल्मे आई।  अजहर छोड़  चारों फिल्मे खूब चली। देखा जाए तो खेल और खिलाड़ी विषय पर बनी फिल्मों का ये साल स्वर्णिम वर्ष था।

 2016 से लेकर 2024 के सालों मे  83, साइना, शाबास  मिठू, और अब चंदू चैंपियन और मैदान आई लेकिन दर्शको ने इनके हकीकत के खिलाड़ी, कोच को तो प्यार दिया लेकिन फिल्मों को नकार दिया। सचमुच खेल पर फिल्में बनाना कोई आसान खेल नही है।

स्तंभकार-संजय दुबे

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