सिर्फ स्वास्थ्य कर्मचारी रहेंगे अनुशासन में,बाकी बेलगाम
छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य मंत्रालय के अपर सचिव मनोज पिंगुवा ने विभाग के मंत्री और उच्च अधिकारियों से सीधे मिलने पर रोक लगा दिया है। जारी आदेश में छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम1966 का हवाला देते हुए कहा गया है विभाग के कर्मचारी निजी समस्या के निराकरण के लिए मंत्री सहित उच्च अधिकारियों से मिलने के लिए अपने immidiate अधिकारी से नियमानुसार अनुमति लेने के बाद ही मिल सकेंगे।
सामान्य प्रचलन में व्यवस्थापिका में निर्वाचित जन प्रतिनिधि ही मंत्री बनते है। विभाग के सचिव/संचालक/प्रबंध संचालक सहित मुख्य कार्य पालन अधिकारी के माध्यम से मंत्री और विभागीय अध्यक्ष कार्य संपादित करते है। ये सभी मंत्रालय, संचालनालय सहित विभाग को आबंटित भवन में शासकीय कार्य का निर्वाहन करते है। जन प्रतिनिधियो का भीडतंत्र से मोह छिपा हुआ नही है। अपने शासकीय घर के सामने लगी भीड को लोकप्रियता का मापदंड माना जाता है। सरकारी कर्मचारियों को आम जनता के सामने गिड़गिड़ाना उन्हे भाता है। सरकारी कर्मचारी पैर छू ले, दंडवत कर ले तो क्या कहने!
कार्यपालिका याने सारे सरकारी, अर्ध शासकीय सहित जितने भी वेतन भोगी कर्मचारी, इन सबकी सामान्य समस्या अगर कोई है तो वह ट्रांसफर है। ट्रांसफर का नाम सुनते ही सारे शरीर निचुड जाता है। बनी बनाई व्यवस्था से अन्य स्थान पर जाना दंड लगता है। यही एक मुख्य कारण है जिसका भयादोहन व्यवस्थापिका करती है।इसके अलावा बच्चो की शिक्षा, बीमारी अन्य दो वजह है।सरकारी कर्मचारियों में एक तबका ऐसा रहता है जिसे अपने प्रभुत्व को दिखाने का चस्का लगा होता है। ये लोग मान्यता प्राप्त कर्मचारी संघ में ऐसे पद पर आसीन होते है जिसे सरकार खुद ही ट्रांसफर से कुछ अवधि की छूट देती है।
भूपेश बघेल की सरकार ने ये व्यवस्था खत्म कर दी। बघेल सरकार में सामान्य प्रशासन विभाग में बैठे सचिव ने तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को अवगत करा दिया था कि मान्यता प्राप्त कर्मचारी संघ को पत्राचार की अनुमति है। वे अपनी समस्या पत्र के माध्यम से बता सकते है, जिसका जवाब देने की बाध्यता सरकार को है। सरकारी कामकाज में गाल बजाने का मतलब केवल समय की बर्बादी है। कांग्रेस सरकार के समय निकले ट्रांसफर पॉलिसी में छूट की कंडिका ही नहीं है।
व्यवस्थापिका के अपने लोभ मोह है जिस पर कोई भी सामान्य प्रशासन विभाग रोक नही लगा सकता है लेकिन कार्यपालिका को नियंत्रित और अनुशासित रखा जा सकता है। इसके लिए आज से अंठावन साल पहले सिविल सेवा (आचरण ) नियम प्रचलन में आ चुका है। इसके तहत कोई भी शासकीय कर्मचारी सीधे तौर पर मंत्रालय, संचालनालय सहित दीगर विभाग के मंत्री अथवा सचिव, संचालक अथवा अन्य निर्णयकर्ता अधिकारी से सीधे नहीं मिल सकता। मिलने के लिए नियमानुसार विभागीय अनुमति लिखित रूप से लेना अनिवार्य है। मंत्री, सचिव के यहां सुरक्षा और गोपनीयता के चलते हर व्यक्ति का नाम आगंतुक रजिस्टर में दर्ज करने की अनिवार्यता है।
मनोज पिंगुआ बधाई के हकदार है कि सुशासन के लिए हिम्मत दिखाई। प्रश्न ये भी उठता है कि जो व्यवस्था सामान्य प्रशासन विभाग में बनी बनाई है उसका पालन राज्य के बाकी मंत्री, सचिव और आईएएस अधिकारी अपने विभाग में क्यों प्रभावशील नहीं कराना चाहते? छत्तीसगढ़ के 32 जिलों सहित राजधानी के सरकारी कर्मचारी कार्यालयीन समय में मंत्री सचिव, संचालक के बंगले में खड़े दिखते है। चेहरा दिखाओ संस्कृति है।मंत्री अधिकारी घर से निकले नहीं या कार में बैठे नहीं अदब से सिर झुकाना आदत सी हो चली है। मैं अनेक ऐसे कर्मचारी नेताओं को जानता हूं जो सरकार से वेतन लेकर मंत्री अधिकारी के घर में बैठे दिखते थे। इन्हें शासकीय कार्यकर्ता की श्रेणी मिली हुई थी। आश्चर्य की बात ये भी रहती थी कि आईएएस- आईपीएस अधिकारी भी ऐसे शासकीय कार्यकर्ता को सिर आंखों पर बैठा कर चिचोरी करते दिखते थे।
छत्तीसगढ़ के सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव मुकेश बंसल धुन के पक्के व्यक्ति है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अपर सचिव मनोज पिंगुवा ने प्रेरणात्मक आदेश को प्रदेश के सभी विभागों के लिए अनिवार्यता की आवश्यकता है।
स्तंभकार- संजयदुबे