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इंजीनियर-तपन चक्रवर्ती 

2 अप्रेल 2025 बुधवार की रात को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ की बढ़ोतरी की घोषणा करके पूरे विश्व को चौका दिया है। अमेरिका ने इस दिन को ‘‘लिब्रेशन-डे‘‘ का नाम दिया है। अमेरिका के राष्ट्रपति ने 90 देशों में अपने उत्पादकों पर आयात शुल्क बढ़ा दये हैं। जिसे टैरिफ के नाम से जाना जाता है। सबसे ज्यादा टैरिफ अमेरिका ने चीन पर 145 प्रतिशत आयातित शुल्क लागू कर दिया है। इसके दूसरे तरफ भारत से 27 प्रतिशत का टैरिफ अमेरका वसूल करेगी। इसके अलावा पाकिस्तान पर 29 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया है।

पूर्व में अमेरिका सामान्यतः 10 प्रतिशत का टैरिफ लगाया था। इस तरह आचानक अमेरिका का राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सभी 90 देशों में अपने मनमर्जी हिसाब से टैरिफ लगाये जाने से विश्व व्यायपार में गिरावट देखने को मिली है। इसके अतिरिक्त सभी देशों के शेयर मार्केट मुंह के बल गिर गया है। दूसरी तरफ चीन द्वारा अपना विरोध जताते हुए, अमेरिका पर अपने उत्पादक वस्तुओं पर 125 प्रतिशत का टैरिफ लगा दिया गया है। इस तरह पूरे विश्व में अमेरिका का ‘‘टैरिफ-युद्ध‘‘ छिड़ गया है।

अमेरिका द्वारा आचानक अपने उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने से चीन जरूर इसका पुरजोर विरोध कर रहा है। चीन द्वारा सभी देशों से सम्पर्क कर बढ़े हुए टैरिफ का समाधान निकालने के लिए लगातार प्रयासरत् है। अन्यथा स्वयं के आलावा सभी देशों में महंगाई बढे़गीऔर अर्थव्यवस्था रसातल में चला जावेगा। दुसरी तरफ डोनाल्ड ट्रंप द्वारा सभी देशों में हो रहे टैरिफ के विरोध के कारण नया टैरिफ को 90 दिन के लिए लागू होने में रोक लगा दिया गया है। तब तक पहले की तरफ 10 प्रतिशत टैरिफ सभी देशों में लागू रहेगा। अमेरिका सभी देशों पर अपना वर्चस्व को बनाये रखने के लिए हमेशा की तरह धौंस अपनाते आ रहीं है। टैरिफ किसी भी देश का अर्थव्यवस्था को संतुलन बनाये रखने के लिए आवश्यक होता है। जिससे देश का घरेलू उत्पादन एवं लघु-उद्योगों को संभलने का मौका जरूर मिलता है। टैरिफ बढ़ाने से अमेरिका की अर्थव्यवस्था को जरूर ताकत मिलेगी। किन्तू दुसरे देश को आर्थिक संकटों के साथ खुदरा सामानों के अलावा अन्य चीजों का मूल्य वृद्धि जरूर होगा। इससे उस देश की मुद्रा का मूल्य भी गिर जावेगा।

वर्तमान समय में भारत का रूपया डॉलर की तुलना में 27 प्रतिशत टैरिफ के लगने से रूपया की कीमत डॉलर के मुकाबले और अधिक गिर जावेगा। एक डॉलर की कीमत भारतीय मुद्रा रूपया 86.75 है।लगभग 65 देशों की मुद्राओं की तुलना अमेरिकी डॉलर से की जाती है। 30 मई 2014 को देश का रूपया एक डॉलर के मुकाबले 59.28 रूपया था। देश जब 1947 में आजाद हुआ था, तब एक डॉलर की कीमत 1 रूपया था। इस तरह 78 साल बाद एक डॉलर की कीमत रूपया 86.75 तक जा पहुंची है। लगातार 11 वर्षो से रूपया डॉलर के मुकाबले 27.47 रुपये गिर चुका है। संभवतः कुछ दिनों में एक डॉलर कीमत 100 रूपया से ऊपर हो जावेगा। इसके अलावा बेरोजगारी दर 50 वर्षो की तुलना में आज सबसे ऊचे दर पर कायम है। किसान अपने फसलों पर समर्थन मूल्य के लिए 185 दिनों से अधिक दिनों से धरने पर बैठे हुए है। लोगो की आमदनी प्रायः खत्म हो चुकी है। आय का स्तोत्र बचा नहीं। शिक्षा व्यवस्था का हाल-बेहाल है। प्रदेश में बी.एड. धारी 39000 सहायक शिक्षकों को नौकरी से हटा कर उन्हे बेरोजगारी की श्रेणी में ला दिया गया है। इस तरह प्रदेश में सुनियोजित तरिके से रोजगार के अवसर बंद किये जा रहें है।

अमेरिका द्वारा अपने उत्पाद वस्तुओं पर आयातीत शुल्क बढ़ाने से अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्था लडखड़ा गई है। किन्तु देश का प्रधान जानबुझकर हिन्दू मुस्लिम के मधुर संबंधों को खत्म करने के लिए लगातार कुत्सित प्रयास करते आ रहें है। देश के प्रधान द्वारा संसद में बजट सत्र के अंतिम दो दिनों के शेष अवधि पर ‘‘वक्फ-बोर्ड‘‘ संसोधन बिल 2025 लाकर देश का ध्यान मुख्य मुदों से हटा कर ‘‘देश बाटो और राज करो‘‘ के अंग्रेजी शासन की अवधारणा के अलावा 11 वर्षो तक अपनी नाकामी शासन को छुपाने के लिए इस तरह विवादित बिल संसद में लाया गया है और साथ ही यह संदेश प्रचारित किया जा रहा है कि, सरकार मुस्लिम संवर्गो का परम हितैषी है।

भारतीय मुस्लिम सामाज का ‘‘वक्फ-बोर्ड‘‘ एक सामाजिक संगठन है। जिसे 1954 में भारत सरकार द्वारा मान्यता प्रदान की गई है। इस समाजिक संगठन के नियमानुसार मुस्लिम सामाज में कोई भी मुसलमान अपनी संपत्ति को अल्लाह (ईश्वर) के नाम से दान कर सकता है। ‘‘वक्फ-बोर्ड‘‘ का मुख्य उद्देश्य गरीब व असहाय मुसलमान परिवारों को जीवन संवारने के लिए हर संभव सहयोग किया जाता है। ‘‘वक्फ-बोर्ड‘‘ के अंतर्गत दरगाह, मस्जिद एवं मदरसों की संपत्ति का देखरेख एंव अनुशासित ढंग से संचालित होती है। ‘‘वक्फ-बोर्ड‘‘ के कमेटी में महिला सदस्यों को नहीं रखा गया है। ‘‘वक्फ-बोर्ड‘‘ कमेटी की संपत्तियों का प्रत्येक वर्ष आडिट होती है।

‘‘वक्फ-बोर्ड‘‘ के नियमानुसार उनके अधीनस्थ संपत्तियों को न कोई खरीद सकता है और न ही कोई बेच सकता है। कमेटी सिर्फ असहाय मुसलमान परिवारों की जीवन को खुशहाल रखने के लिए प्रतिबंध रखती है। ‘‘वक्फ-बोर्ड‘‘ के अधीन बेशुमार जमीन व मकानों की संपत्ति है। देश के सेना एवं रेलवे विभाग के अधिनस्थ जमीनों की तुलना में ‘‘वक्फ-बोर्ड‘‘ असीम अचल संपत्ति (जमीनें व मकान) के मालिक है। ‘‘वक्फ-बोर्ड‘‘ की संपत्ति दान की माध्यम से मिली हुई है। किंतु कुछ जमीनों एवं मकानों पर मुकदमा चल रहें है, क्योंकि अधिकांश संपत्तियों का लेख-जोखा (रजिस्ट्री) उपलब्ध नहीं हैं। जिसके कारण दान में दिये गए जमीनों पर दावेदारों द्वारा मुकदमा दायर कियें गयें है।
कई मुकदमा 50-60 सालों से सुनवाई चल रहीं है। किंतु आज तक निर्णय नहीं हुआ है। इस मुकदमेंबाजी जमीनों पर सरकार की पैनी नजर बनी हुई है। वर्तमान समय में ‘‘वक्फ-बोर्ड‘‘ विवादित जमीन सरकार के आधिपत्य में है। जिसे देश का प्रधान अपने मित्रों को देने की तैयारी में प्रयासरत् है। ‘‘वक्फ-बोर्ड‘‘ के विवादित जमीनों को ठिकाने में लगाने के लिए देश का प्रधान 02 अप्रेल 2025 को लोकसभा के बजट सत्र में अंतिम दो दिन शेष बचे समय में ‘‘वक्फ-बोर्ड संसोधन नियम 2025‘‘ का बिल लाया गया है और स्वयं देश का प्रधान विदेश दौरे पर निकल पडे़। दोनो सदनों में बहुमत के आधार पर बिल पास होकर, 05 अप्रेल 2025 को राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद, दिनांक 08 अप्रेल 2025 से देश में ‘‘वक्फ-बोर्ड‘‘ के कुछ नियमों में संसोधन कियें जावेंगे।

दुसरी तरफ पूरे देश में जागरूक मुस्लिम संगठनों द्वारा ‘‘वक्फ-बोर्ड‘‘ संसोधन नियम 2025 के विरोध में सड़क पर उग्र आंदोलन कर रहें है। इन जागरूक संगठनों की मांग है कि वक्फ-बोर्ड के संशांधन बिल 2025 को रद्द किया जावें। इस तरह के उग्र आंदोलन के चलते देश में अशांति का वातावरण बन गया है। संसद में बहस के दौरान गृह मंत्री ने कड़े शब्दों में धमकी के अंदाज में कहा है कि – कुछ संगठन के लोगो ने कहा है कि – हम यह नियम को नहीं मानेंगे। वे इस संसद के नियम को कैसे नहीं मानेंगे ? यह भारत सरकार का नियम है। कुछ राजनैतिक दलों के प्रतिनिधि द्वारा संसद से वक्फ-बोर्ड के संशोधित नियम को उच्चतम न्यायालय दिल्ली में चुनौती दी गई है। जिसकी सुनवाई 16 अप्रेल 2025 को उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के बेंच में होगी। ‘‘वक्फ-बोर्ड‘‘ के संशोधित नियम पर सत्ता पक्ष को उनके दो प्रमुख सहयोगी राजनैतिकदलों के समर्थन के कारण यह बिल संसद से मंजूरी मिली है। किंतु आज समर्थन देने वाले राजनैतिक दलों में बिखराव देखने को मिल रहा है। इस वर्ष के अंतिम समय में कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव में समर्थन देने वाले कुछ राजनैताओं की राजनैतिक जीवन हमेशा के लिए आई.सी.यू. में चली जावेगी।

{ यह लेखक के निजी विचार है}

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