आपराधिक मामला एवं विभागीय जांच एक साथ नहीं चल सकते; विभागीय जांच पर रोक
बिलासपुर, छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि विभागीय जांच और आपराधिक मामला एक साथ नहीं चला सकते। याचिकाकर्ता पुलिस आरक्षक की याचिका पर सुनवाई करते हुए उसके खिलाफ जारी विभागीय जांच के आदेश पर रोक लगा दी है।
जांजगीर निवासी दुष्यन्त पांडेय ने अधिवक्ता अभिषेक पांडेय एवं दुर्गा मेहर के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। दायर याचिका में कहा है कि वह जांजगीर चांपा जिले में पुलिस विभाग में आरक्षक के पद पर पदस्थ हैं। सेवा काल के दौरान एक जून 2022 को उसके विरुद्ध पुलिस थाना- जांजगीर में भारतीय दंड विधान की धारा 306 एवं एसटी एससी एक्ट के तहत् अपराध पंजीबद्ध किया गया। उसके पश्चात् पुलिस अधीक्षक जांजगीर-चांपा ने उसके विरूद्ध आरोप पत्र जारी कर विभागीय जांच कार्यवाही प्रारंभ करने का आदेश जारी कर दिया। याचिका की सुनवाई जस्टिस अरविंद सिंह चंदेल के सिंगल बेंच में हुई। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिषेक पांडेय ने सिंगल बेंच के समक्ष पैरवी करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के विरूद्ध जिन आरोपों पर अपराध पंजीबद्ध किया गया है उन्हीं समान आरोपों पर विभागीय जांच कार्यवाही संचालित की जा रही है।
दोनों मामलों में कई अभियोजन साक्षी भी समान है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में स्टेट बैंक आफ इंडिया विरूद्ध नीलम नाग एवं अन्य इसके साथ ही अविनाश सदाशिव भोसले विरुद्ध युनियन आफ इंडिया एवं अन्य के प्रकरण में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि यदि किसी शासकीय सेवक के विरूद्ध दर्ज आपराधिक मामले एवं विभागीय जांच कार्यवाही में अभियोजन साक्षी समान है तो उन अभियोजन साक्षियों का सर्वप्रथम आपराधिक मामले में बयान एवं परीक्षण किया जाना चाहिये। अन्यथा आपराधिक कार्यवाही पूर्वाग्रह से ग्रसित एवं दूषित हो जाती है जो कि प्राकृतिक न्याय सिद्धांत का उल्लंघन है। मामले की सुनवाई के बाद छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने रिट याचिका को स्वीकार करते हुए याचिकाकर्ता के खिलाफ चल रहे विभागीय जांच पर रोक लगा दी है।