जातीय हिंसा की आग की चपेट में मणिपुर…
इंजीनियर तपन चक्रवर्ती
देश का उत्तरी पूर्वी क्षेत्र पहाड़ों से घिरा हुआ मणिपुर राज्य एक संवेदनशील सीमावर्तीय क्षेत्रों के बीच में है। 3 करोड़ के आस पास की अबादी जो कि उत्तर में नागालैंड, दक्षिण में मिजोरम, पश्चिम में असम एवं पूर्व में म्यांमार सीमा में आता है। मणिपुर 90 प्रतिशत पहाड़ी क्षेत्र एवं 10 प्रतिशत मैदानी इलाका में कुकी, नागा एवं मैतई समाज के लोग रहते है। इसमें 54 प्रतिशत मैतई समाज का बाहुल्य क्षेत्र है।
मणिपुर को 1971 में राज्य के रुप में दर्जा मिला है। शुरू से ही मणिपुर में कुकी आदिवासी समाज द्वारा जंगल एवं पहाड़ी क्षेत्रों से उन्हे हटाये जाने का विरोध किया जा रहा हैं। कभी इनका विरोध काफी उग्र होता रहा तो कभी सिर्फ आश्वासनों से शांत किया जाता रहा है। इनके आंदोलन को सरकार द्वारा कुचलने के लिए ‘‘सशस्त्र बल विशेषाधिकार (अफस्पा) कानून’’ को कड़ाई से लागु किया गया है। जिसके विरोध में इरोन चानू शर्मिला ने 16 वर्षो तक भूख हड़ताल में रही किंतू दुख के बात है कि (अफस्पा) नहीं हटाया गया है। मणिपुर में वर्तमान समय हो रहे जातीय हिंसा के आगजनी में ईरोन शर्मिला ने दुख व्यक्त करते हुए कहा है कि – मेरा मणिपुर जल रहा है।
मणिपुर में विगत 28 अप्रैल को अल्प संख्यक कुकी आदिवासी क्षेत्र के चुराचंदपुर में मुख्यमंत्री के समारोह मे अल्पसंख्यक आदिवासी समाज अपनी समस्याओं से संबंधित ज्ञापन देने सभा स्थल गये थे। इस दौरान कुछ विरोध प्रदर्शन भी हुऐ थे। किंतु पुनः 3 मई को आदिवासी समाज एवं गैर-आदिवासीयों के बिच में हिंसक झड़पे हुई, तद्उपरान्त मणिपुर देखते ही देखते धू-धू कर जल उठा।
इस आगजनी विरोध के चलते मैइती समाज को जल्द ही आदिवासी समाज में मान्यता देने के लिए नारे-बाजी भी हुई। परिणाम स्वरूप कुकी आदिवासियों के साथ एवं अन्य गरीब लोगो के घर आग के हवाले कर दिये थे। इस असंतोष को दबाने हेतू असाम रायफल्स की सेना तैनात की गई है। किन्तू आगजनी की घटना थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस जातीय हिंसा में सैकड़ो लोगों की जान एवं गंभीर रूप से लोग घायल हुए है। इस हिंसा की दौर में 04 जून को ‘‘मानवता’’ को सरे राह जिंदा जला दिये जाने का खबर है कि – इंफाल से 15 किलो मीटर दूर कांगचुप में एक ऐम्बूलेंस में सवार घायल हुऐ बच्चें (गोली लगने से) एवं माँ के साथ अन्य महिला को आंदोलनकारीयों ने जिंदा जला दिये थे, उस माँ की सिर्फ गलती यह है की स्वयं मैतई समाज का होकर, कुकी समाज से शादी रचाई थी।
इस हिंसा के दौरान घटना स्थल से पुलिस अधिकारी अपना जान बचा कर भाग गये। मणिपुर के हाईकोर्ट द्वारा मैतई समाज को आदिवासी समाज में दर्जा देने हेतु, केन्द्र सरकार को अनुशंसा के साथ राज्य सरकार द्वारा प्रेषित करने हेतु निर्देश दिये गये थे। इस निर्देश को अमल करने हेतु मैतई समाज द्वारा सरकार पर दबाव बनाये जा रहे थे। एवं इसके अतिरिक्त मणिपुर में विदेशी घुसपैठ को रोकने हेतु नागरिक संशोधन कानून (छत्ब् एवं छत्च्) लागू करने हेतु हिमायती भी है। बहुत संख्यक मैतई समाज में मुख्यमंत्री स्वयं आते है।
दूसरी तरफ मणिपुर के पहाड़ों एवं जंगलों में रहने वाले 44 प्रतिशत कुकी आदिवासी समाज की मांग है कि- उन्हे मणिपुर के जंगल एवं पहाड़ी क्षेत्र से बेहदखल नहीं कराये जावें। कुकी आदिवासी समाज का जल, जंगल एवं पहाड़ से जुड़े हुए है। सरकार द्वारा आज दिनांक तक इनके मांगो पर सहानुभूती पूर्वक विचार के लिए अनको बार आश्वसन जरूर दियें गए है। किन्तु आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई है।
अशांत मणिपुर में शांति बहाली हेतु देश का गृहमंत्री 29 मई को तीन – दिवसीय शांति वार्ता हेतु प्रवास पर थें। किंंंतु गृहमंत्री द्वारा लिये गये निर्णय अभी तक सामने नहीं आया हैं। जिस कारण 07 जून को मणिपुर के कुकी आदिवासी समाज द्वारा दिल्ली में स्थित गृहमंत्री के आवास के समक्ष शांति वार्ता में लिये गये निर्णयों एवं कुकी आदिवासी समाज की जान माल की रक्षा हेतु धरना प्रदर्शन किये गये थे। अभी तक कुकी समाज के सैकड़ो घरों के साथ बच्चे, बुढ़े, जवान एवं महिलाओं को आग के हवाले किये जा चुके है। इस दुखद घटना से दुखी एवं आक्रोशित होकर, गृहमंत्री से कुकी समाज को सुरक्षा प्रदान करने हेतु मांग किये जा रहे थे।
मणिपुर में आजादी के बाद से सन् 2017 तक कुकी समाज को जंगल व पहाड़ों से बेदखल करने हेतु ‘‘वन सुरक्षा अधिनियम के अन्तर्गत’’ अत्याचार जारी रहा और अभी बहुसंख्यक मैतई समाज को आदिवासी संवर्ग में करने हेतु मणिपुर अशांत है। इस जातीय हिंसा के आगजनी के कारण, मणिपुर विकास की दौड़ में सबसे पीछे रह गया है। इस तरह देश के हर छोटे-छोटे राज्यों को विकास की दौड़ से अलग करने हेतु जातिवाद, भाषावाद एवं धार्मिकता की संघातिक जाल में फंसा कर, राज्यों को अशिक्षित करके अनोखा किस्म का राजतंत्र स्थापित किया जा रहा है।
( लेखक के स्वयं के विचार है )