‘समान नागरिकता कानून विरूद्ध देश की अर्थव्यवस्था‘
इंजीनियर तपन चक्रवर्ती
पिछले 10 वर्षो से देश में ‘‘समान नागरिकता कानून‘‘ लाने की बातें लगातार सुनाई में आ रहीं है। यह मुद्दा जब लोक तंत्र का महायज्ञ (आम चुनाव) की तैयारियां देश में चलती रहती है। किंतु देश की भोली भाली जनता को हमेशा भ्रमित करते हुए सुनहरे सपनों की दुनिया में सर्व सुविधाओं की गारंटी तक देते आ रहें है। ‘‘समान नागरिकता कानून‘‘ (युनिफार्म सिविल कोड) का अर्थ- ‘‘एक पंथ निरपेक्ष कानून‘‘ होता है। जो भी पंथ के लोगों के लिए एक समान रूप से लागू होता है। दूसरे शब्दों में अलग-अलग पंथो के लिए अलग-अलग कानून न होना ही ‘‘समान नागरिकता कानून‘‘ की मूल भावना है।
देश का गृहमंत्री 22 अप्रेल 2022 को इसे लागू करने की आवश्यकता पर अडिग रहें हैं और संभवतः इस नये कानून को नये संसद भवन के छत के नीचे, मानसून सत्र में पेश किये जावेंगे। इसके अलावा अगले वर्ष जनवरी माह के प्रथम सप्ताह में बहुप्रतिक्षित ‘‘राम मंदिर‘‘ का उद्घाटन से देश की फिजा बदलने की अपार संभावनाए व्यक्त की गई है।
सर्व प्रथम अंग्रेज सरकार द्वारा 1835 में देश में सांप्रादायिकता के आधार पर अपराध और साक्ष्यों के अनुबंधों में एक समान अधिकार लाने के लिए प्रस्ताव पेश की गई थी। इस कानून का भारतीय संविधान में भाग-4 के अनुच्छेद में इसका जरूर उल्लेख किया गया है। किंतु भारतीय संविधान में 42वें संशोधन के माध्यम से ‘‘धर्म – निरपेक्षता‘‘ को माना गया है। क्योंकि देश में समस्त नागरिकों के साथ धार्मिक आधार पर किसी भी प्रकार भेंद-भाव को समाप्त करना है। भारतीय संविधान के कारण देश में ‘‘समान नागरिकता कानून‘‘ लागू नहीं किया गया है। यह कानून अमेरिका, आयर लैंड, पाकिस्तान, बंगला देश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया एवं सूडान के अलावा कई देशों में लागू है। किंतू भारत देश में विभिन्न धर्मों के आधार पर अपना निजी कानून लागू है।
हिन्दू-सिख धर्म, जैन धर्म और बौध धर्म के लिए व्यक्तिगत कानून है। किंतू मुस्लिम धर्म और ईसाई धर्म के लिए उनके अपने-अपने कानून हैं। इसके अतिरिक्त मुस्लिम धर्म के अनुयाईयों के लिए उनके शरियत कानून पर अधारित है। गोवा – पुर्तगाली नागरिक संहिता 1867 से लागू है। इसलिए गोवा में ‘‘समान नागकिता कानून‘‘ लागू रहने की बात कहा जा सकता है। विश्व में सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत देश में ‘‘समान नागरिकता कानून‘‘ पर गंभिरता पूर्वक विचार हेतु उच्चतम न्यायालय द्वारा 2016 में केन्द्र सरकार को जरूर निर्देश दिये गये थें। जिसे फलीभूत करने के लिए नये संसद भवन में प्रस्ताव के जरिये मानसून सत्र में पेश किये जायेंगे।
देश की गंभीर एवं बीमारग्रस्त अर्थव्यवस्था पर राजनेताओं का प्रायः विदेश दौरा जरूर कानों कान पर फूसफूसानें की खबर रहती है। फिर कुछ समय बाद दौरे से वापस आने पर आर.बी.आई. द्वारा रेपो रेट बढ़ानें की घोषणा होती है। आजादी के बाद से लेकर 2013 तक देश के प्रधान, देश के विकास के लिए कुल 55 लाख अमेरिकी डॉलर विश्व बैंक से कर्जा लिये थें। किंतू 2014 से अब तक कुल 1.55 लाख अमेरिकी डॉलर विश्व बैंक से कर्जा लिये गये हैं। 2013 तक 125 करोड़ जनता पर 55 हजार रूपयों का कर्जा, जन्म लिये प्रति बालक के सिर पर था। किंतु 2023 में 140 करोड़ की जनता पर जन्म लिये प्रति बालक के सिर पर 1.50 लाख रूपयों का कर्जा रहेगा। 2013 में भारत देश पुरे विश्व में अर्थव्यवस्था पर तीसरे स्थान पर था। 2023 में भारत देश अर्थव्यवस्था में पांचवे स्थान पर हैं।
सकल घरेलू उत्पाद की आकड़ा को वर्तमान समय में प्रगति के पथ पर बताया जा रहा है। 2013 तक (ळण्क्ण्च्ण्) 3.0 प्रतिशत तक थी अब 2024 तक 6.0 प्रतिशत तक प्रबल संभावने बतायें जा रहें हैं। 2013 में एक अमेरिकी डॉलर की कीमत भारतीय मुद्रा 61 रूपया था। अब 2023 में 1 अमेरिकी डॉलर की कीमत भारतीय मुद्रा 84 रूपयां हैं। वर्तमान समय में देश में 3.46 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था है। सपनों का सौदागार ने दंभ-भरतें हुए कहा है की इसे 50 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर 2048 तक जरूर लाकर दिखायेंगे। देश में बेरोजगारी 2013 मे 5.60 प्रतिशत थी। अब 2023 तक देश बेरोजगारी 8.11 प्रतिशत हो चुकी है। इसके साथ ही देश में महंगाई 2013 में 7.0 प्रतिशत थी अब 2023 तक देश में महंगाई 16.0 प्रतिशत के ऊपर है। डिजल-पेट्रोल 2013 में 5.49 – 71.0 प्रति लिटर था। अब 2023 में डिजल-पेट्रोल 89.00-98.00 प्रति लिटर हैं।
इसके अतिरिक्त विदेशों मुद्रा भंडार देश में 2013 तक 155 अरब अमेरिकी डॉलर की बढौतरी हुई थी। अब 2023 में विदेशों मुद्रा भंडार पहली बार 600 अरब अमेरिकी डॉलर के निचे है। वर्तमान समय में देश का अर्थव्यवस्था 1990-91 की स्थिति से बद से बदतर हालत में है। 1990-91 में देश की सार्वजनिक सम्पत्ति देश में मौजूद थी और अब प्रायः अधिकतर सार्वजनिक सम्पत्ति देश में नहीं है। आज मणिपुर जल रहा हैं। और उतराखंण्ड में धार्मिक उन्माद बढ़ चुका हैं। आजाद भारत का अब तक का इतिहास रहा है कि अशांत देश को अकेला छोड़कर देश का प्रधान कभी भी विदेश दौरे पर नहीं गये थे। यही देश के लोकतंत्र की खूबी रही है।
(यह लेखक के निजी विचार है)