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MINING;अफसरों की अनदेखी से अवैध ब्लास्टिंग और अंधाधुंध खनन का खेल जारी, ग्रामीण बेहाल…

हलाकान

द पत्रकार

राजनांदगांव, छत्तीसगढ के नवगठित खैरागढ़ जिले के ठेलकाडीह और आसपास के सीमावर्ती इलाकों में अवैध खनन का खेल खुलेआम जारी है. यहां सक्रिय दर्जनों खदानें और क्रेशर माफिया, जिला खनिज विभाग और प्रशासन की अनदेखी का फायदा उठाकर अंधाधुंध खनन कर रहे हैं. पत्थरों के अवैध उत्खनन और ब्लास्टिंग ने न केवल पर्यावरण को बर्बाद किया है, बल्कि ग्रामीणों की जिंदगी को भी संकट में डाल दिया है.

वैध ब्लास्टिंग से भू-जल स्तर 500 फीट तक गिरा

इस क्षेत्र में नियमों को ताक पर रखकर अवैध ब्लास्टिंग और पत्थर खनन हो रहा है. इसका असर इतना खतरनाक है कि यहां का भू-जल स्तर 500 फीट तक गिर चुका है. धूल और प्रदूषण से न केवल खेत बंजर हो रहे हैं, बल्कि आसपास के गांवों में रहने वाले ग्रामीण गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं. जिले के कलकसा, टेकापार, बल्देवपुर, साल्हेभर्री और जुरलाकला जैसे गांवों में खदानों की गहराई 150 से 200 फीट तक पहुंच गई है. इन खदानों के चारों ओर न तो कोई सुरक्षा घेरे का इंतजाम है और न ही पर्यावरण संरक्षण के नियमों का पालन हो रहा है.

सुरक्षा की कमी और पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन की शिकायतें

ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने कई बार खदानों में अवैध गतिविधियों, सुरक्षा की कमी और पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन की शिकायतें की हैं. लेकिन अधिकारियों और खदान संचालकों के बीच साठगांठ के चलते अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई.ग्रामीणों के अनुसार, कभी-कभी सरकारी गाड़ियां खदानों की ओर जाती दिखती हैं, लेकिन वे केवल दिखावे के लिए दौरा करती हैं. जमीन पर स्थिति जस की तस बनी हुई है.

4 एकड़ में खदान की अनुमति पर कई रकबे में खनन

खनिज विभाग ने खदानों और क्रेशरों को 4 एकड़ में उत्खनन की अनुमति दी थी, लेकिन असल में इन खदानों का फैलाव कई गुना अधिक हो चुका है. ग्रामीण बताते हैं कि पिछले चार सालों से खदानों की कोई जांच तक नहीं हुई है. खदानों की लीज पहले 5 साल के लिए दी जाती थी, लेकिन 2018 में नियम बदलने के बाद अब यह लीज 30 साल के लिए दी जा रही है. इसका मतलब यह है कि यहां के लोगों को 2048 तक इन्हीं हालातों में जीना पड़ेगा.

ग्रामीण जीवन तबाह

खैरागढ़ का यह इलाका अवैध खनन की वजह से बर्बादी के कगार पर है. अगर जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यहां का पर्यावरण, खेती और ग्रामीण जीवन पूरी तरह से तबाह हो जाएगा. प्रशासन की सुस्ती और खदान संचालकों की हठधर्मिता ने इन गांवों को संकट में डाल दिया है. क्या अब भी सरकार और प्रशासन जागेगा, या यह विनाश ऐसे ही चलता रहेगा?

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