
भारत के बनने वाले और न बने पहले प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को देश एक महान व्यक्तित्व के रूप में जाना जाता है। भगवान भरोसे छोड़े गए रियासतों के समूह को देश की सीमा के भीतर लाना कठिन काम था। गृह मंत्री रहते हुए सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अद्भुद सख्ती का परिचय दिया। भोपाल, हैदराबाद, जूनागढ़, ट्रांवनकोर और जोधपुर को देश की सीमा रेखा के भीतर लाने का काम किया । वे कश्मीर को भी ले आते लेकिन राजनैतिक लोचा ने सत्यानाश कर दिया। नासूर के रूप में पाक अधिकृत कश्मीर हमारे लिए सिरदर्द बन गया है।
आजादी के चार साल बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु हो गई। एक कांटा कम हो गया।
कांग्रेस ने सरदार को विस्मृत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। परिवारवाद ने इस दिशा में बढ़चढ़ कर काम किया। 1950 से लेकर 2014 तक कांग्रेस के शासनकाल के बीच के गैर कांग्रेसी शासनकाल को छोड़ दिया जाए तो सरदार सरोवर के अलावा अहमदाबाद एयरपोर्ट, राष्ट्रीय पुलिस संस्थान हैदराबाद, महत्वपूर्ण संस्थान के अलावा देश के अन्य राज्यों में नामकरण सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम पर नहीं किया गया। यहां तक देश के एकीकरण कार्य के लिए चार चार कांगड़े के प्रधान मंत्री भारत रत्न से सम्मानित नहीं किया गया। राजनीति में उपेक्षित को अपेक्षित करने में नरसिम्हा राव सरकार ने बाजी मारते हुए सरदार वल्लभ भाई पटेल को भारत रत्न दिया तब तक 41साल बीत चुके थे।
2014 में भाजपा की सरकार आने के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल को स्थापित करने की नीति बनी। अहमदाबाद के पास सरदार वल्लभ भाई पटेल की182 मीटर ऊंची मूर्ति स्थापित कर उनका कद बहुत ऊंचा किया गया। 31अक्तूबर को सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म हुआ, ये भी संयोग है कि इंदिरा गांधी की मृत्यु भी इसी दिनांक को हुई। सरदार के जन्मदिन को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाने का निर्णय भी एक काट है। राष्ट्रीय एकता दिवस 19 नवंबर को भी मनता है। इस दिन इंदिरा गांधी का जन्मदिन है।
इस बार कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन गुजरात में हुआ है। इस राज्य में कांग्रेस के अंतिम मुख्यमंत्री केशू भाई पटेल थे। 1995 के बाद यहां आज तक कांग्रेस सत्ता में नहीं आई है। पिछले तीन लोकसभा चुनाव में सभी 26 लोकसभा सीट भाजपा के हिस्से में आ रही है। ये वही गुजरात राज्य है जहां से सरदार वल्लभ भाई पटेल आते है। कांग्रेस ने माना है कि सरदार वल्लभ भाई पटेल कांग्रेस से थे। पार्टी के अध्यक्ष भी थे। इस कारण विरासत है।
भाजपा की तरफ से जो काउंटर हुआ है वो भी प्रश्न उठाता तो है कि अगर आपकी पार्टी के धरोहर थे तो वल्लभ भाई पटेल को सभी राज्यों में स्मृत करने के लिए सड़को के नाम, चौक चौराहों में मूर्ति के अलावा परिवार के चुनिंदा लोगों के नाम पर संस्थान नामकरण के समय क्यों याद नहीं आई। सरदार वल्लभ भाई पटेल की फोटो गुजरात छोड़ अन्य राज्यों के अधिवेशन में क्यों प्रमुखता से नहीं दिखाया गया। गुजरात आए तो छीना झपटी का खेल हो रहा है। गुजराती अस्मिता को भाजपा टेकओवर कर चुकी है। सरदार पटेल उनके हो चुके है भले ही कांग्रेस के थे लेकिन उनकी उपेक्षा हुई है और अब इसका परिणाम भी भुगतना पड़ रहा है।
स्तंभकार-संज्यदुबे