HC;’मुस्लिम औरत खुद ले सकती है तलाक’, खुला के लिए पति की इजाजत जरूरी नहीं, तेलंगाना हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
हाईकोर्ट

हैदराबाद, तेलंगाना हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि मुस्लिम महिला को ‘खुला’ के जरिए तलाक लेने का पूर्ण और बिना शर्त अधिकार है. इसके लिए पति की सहमति जरूरी नहीं है. ‘खुला’ इस्लामी कानून में एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें पत्नी, दहेज या मेहर जैसी आर्थिक चीजे छोड़कर अपने पति से तलाक ले सकती है. यह प्रक्रिया ‘नो फॉल्ट’ (बिना किसी आरोप या दोष के) और ‘नॉन-कॉनफ्रंटेशनल’ यानी टकराव रहित होती है.
क्या कहा कोर्ट ने?
जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य और बीआर मधुसूदन राव की पीठ ने स्पष्ट किया कि पत्नी द्वारा ‘खुला’ की मांग निजी दायरे में तुरंत प्रभावी होती है और इसमें पति की सहमति की जरूरत नहीं होती. अदालत की भूमिका केवल इस निजी तलाक को वैधानिक मान्यता देने की होती है, जिससे वह दोनों पक्षों के लिए बाध्यकारी बन जाए. ‘खुला’ की प्रक्रिया में मौलवी या दर-उल-क़ज़ा (इस्लामी धार्मिक अदालत) की कोई कानूनी अनिवार्यता नहीं है. अगर महिला ने खुला मांगा है और वह मेहर वापस करने को तैयार है, तो फैमिली कोर्ट को केवल औपचारिक पुष्टि करनी होती है. कोई लंबी सुनवाई नहीं
पूरा मामला क्या है?
इस मामले में एक मुस्लिम महिला ने 2020 में इस्लामी संस्था ‘सदा-ए-हक शरई काउंसिल’ से ‘खुला’ के जरिए तलाक लिया था. महिला के पति ने इसे चुनौती देते हुए फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की थी और कहा था कि उसने खुला के लिए सहमति नहीं दी थी. फैमिली कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी. पति ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की, जिसे अब तेलंगाना हाईकोर्ट ने भी खारिज कर दिया है.
मौलवियों का अधिकार सीमित
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि कोई भी धार्मिक संस्था या मौलवी ‘खुला’ को कानूनी रूप से प्रमाणित नहीं कर सकते. वे केवल सलाह दे सकते हैं. उनका ‘फतवा’ कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होता.
‘खुला’ और ‘तलाक’ में बराबरी
कोर्ट ने यह भी कहा कि मुस्लिम पुरुषों को ‘तलाक’ देने का जो अधिकार है, उसी तरह मुस्लिम महिलाओं को ‘खुला’ का समान अधिकार है. यह अधिकार पूर्ण, स्वतःसिद्ध और पति की मर्जी से स्वतंत्र है. पति केवल ‘मेहर’ की वापसी पर चर्चा कर सकता है, पर पत्नी को विवाह में बने रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकता.
क्यों है यह फैसला अहम?
भारत में मुस्लिम महिलाओं को ‘खुला’ लेने के बाद भी अक्सर कानूनी मान्यता न मिलने के कारण समस्याओं का सामना करना पड़ता है. कोर्ट ने उम्मीद जताई कि इस फैसले के जरिए ऐसी महिलाओं को स्पष्ट दिशा मिलेगी और उनके अधिकारों की रक्षा होगी.
खुला बनाम मुबारात
कोर्ट ने ‘खुला’ और ‘मुबारात’ (आपसी सहमति से तलाक) में भी अंतर स्पष्ट किया. जहां मुबारात पति-पत्नी दोनों की रज़ामंदी से होता है, वहीं खुला पूरी तरह पत्नी की इच्छा पर आधारित होता है.