राज्यशासन

FOREST; हरिहर छत्तीसगढ के ‘जंगल में मंगल’

नारायण भोई

42 साल की सेवा में मात्र एक पदोन्नति

ना कोई गलती ना कोई दोष, फिर भी एमपीपीएससी 1982 में चयनित एक रेंजर को 42 साल में मात्र एक पदोन्नति मिली। हालत यह है की अपने ही लोग उन्हें संदिग्ध नजर से देखते हैं। कहते हैं कोई गड़बड़ी की होगी? तभी तो 30 साल में भी पदोन्नति नहीं मिली वरना छत्तीसगढ में तो राजस्व निरीक्षक भी पदोन्नत होकर आईएएस बन रहे हैं। इस अफसर ने रेंजर पद पर 1983 में कार्यभार संभाला था लेकिन इस पद पर कार्य करते हुए अभी कुछ साल पहले उन्हें एसडीओ वन बनाया गया। अब अगले माह अगस्त 2025 में वे सेवानिवृत हो रहे हैं। 42 साल की सेवा में मात्र एक पदोन्नति यह जंगल विभाग में एक नया उदाहरण हो सकता है। किस तरह से वन विभाग में जंगल राज चला रहा हैं। इसका भी यह एक द्योतक है।

जितना बडा घपला-उतना बडा पद

छत्तीसगढ़ में अभी प्रशासनिक माहौल बेहद खराब है। कुछ बड़े अफसर जेल की हवा खा रहे हैं। राज्य के ही नहीं केंद्र सरकार की जांच एजेंसियां भी यहां दफ्तर खोल चुकी हैं। ऐसे में घोटाले की चर्चा होते ही अफसर शकपका जाते हैं लेकिन जंगल में मोर नाचा किसने देखा। यहां आम चर्चा है कि जितना बड़ा कांड होगा, उतना बड़ा पद मिलेगा। ऐसा होते भी आ रहा है। 30 करोड़ की साल बीज घोटाले की चर्चा में रहे एक आईएफएस अफसर को वन बाल प्रमुख का पद मिला। ढाई करोड के आरा मिल घोटाले में भी शामिल आईएफएस अफसर को भी यह पद मिला। इमली कांड में चर्चा में रहे अफसर भी विभाग के प्रमुख बने। वरिष्ठ अफसरों के रहते वन विभाग की नरवा विकास योजना में पानी की तरह पैसा बहाने वाले अफसर ने भी बाजी मार ली। इसी कड़ी में अब आने वाले समय में एक अफसर को यह पद मिल सकता है क्योंकि इनके कार्यकाल में भी राजधानी रायपुर में तालाब सौंदर्यीकरण में 3 करोड़ से ज्यादा खर्च किए गए थे जिसका अब नामोनिशान नहीं है. 

  रिटायर के बाद बढी पूछपरख़

लम्बे समय से वन विभाग में सेवारत एक आईएफएस अधिकारी को बड़े अफसर कोई भाव नहीं देते थे उन्हें हमेशा बदनाम करने की कोशिश की जाती थी क्योंकि उनके पास कोई बड़ा राजनीतिक जमानतदार नहीं था लेकिन कहते हैं घुरे के दिन भी फिरते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद अब इस अफसर की पूछ परख बढ़ गई है}।अब विभाग के अफसरों की कुंडली यही अफसर बना रहे हैं। रिश्तेदार जो मंत्री ठहरे। मंत्री भी कुंडली के आधार पर आईएफएस अफसरों की जिम्मेदारी तय कर रहे हैं क्योंकि कौन अफसर कितने पानी में है, मंत्री को बराबर पता है।

आशीर्वाद महंगा पड़ा
राजधानी के एक सेवानिवृत आईएफएस अफसर को साय सरकार का आशीर्वाद खूब फला। रिटायर होने के बाद भी इनको बड़ी कुर्सी भी मिली लेकिन उन्हें रावतपुरा सरकार का आशीर्वाद महंगा पड़ रहा है। जब राजनीतिक पंडित जी ने समय रहते रावतपुरा सरकार से दूरियां बना ली तो इन पंडित जी को भी किनारा कर लेना था। अब उनकी कुर्सी हिलती नजर आ रही है। इस अफसर के पीछे केंद्रीय जांच एजेंसी हाथ धोकर पड़ गई है,और कभी भी वे चपेट में आ सकते है। खैर उनका एक साथी उनका इंतजार कर रहा है। जो दर्जन भर साथियों के साथ पहले से जेल में मौजूद है।

बिना जंगल का वन मंडल
अविभाजित मध्यप्रदेश में रायपुर वन मंडल का नाम हुआ करता था यहां काम करने वाले आईएफएस अफसर वन बाल प्रमुख बनते थे उनकी बड़ी हैसियत होती थी। उनकी चर्चा राजधानी भोपाल में होती थी। रायपुर वन मंडल के कार्यों को छत्तीसगढ़ के वनों में कामकाज का मानक करार दिया जाता था लेकिन राज्य बनने के बाद रायपुर वन मंडल में अब जंगल ही नहीं बचा है इस पर भी रायपुर एवं नया रायपुर दो वन परिक्षेत्र बना दिए गए हैं। इससे बजट तो बढ़ गया है और खर्च भी बढा है मगर रायपुर मंडल में हरियाली तो नहीं बढ़ रही है. अपितु वन अफसर हरे भरे हो रहे हैं।
वृक्षारोपण से राहत
वृक्षारोपण के नाम पर बारिश के समय भाग- दौड़ से इस साल वन हमले को काफी राहत मिली है। कभी रायपुर जिले में एक करोड़ पौधे रोपकर गिनीज बुक में नाम दर्ज किया गया था भले ही बाद में पेड़ बनने के पहले ही पौधे गायब हो गए। वन विभाग को इस बार वृक्षारोपण का टारगेट नहीं दिया गया है। राज्य शासन के विभिन्न विभागों को मां के नाम पौधे लगाने का निर्देश दिया गया है। सही भी है जब 6 लाख हेक्टेयर वन भूमि के पट्टे वितरित किए गए हैं तो जंगल बचा ही कहां है हरियाली भर दिख रही है और हरियाली को बढ़ाने के लिए मां के नाम एक पेड़ अच्छी योजना है। लोग भावनात्मक रूप से तो जुड़ेंगे। हो सके पेड़ों की कटाई भी ना करें। बहरहाल इस बरसात में वन अमला आराम फरमा रहा है। 

मैमने जाल में लकड़बग्घे आजाद
सवंयसेवी संस्था के नाम पर राशि भुगतान की गलत जानकारी विधानसभा में देने के मामले में वन विभग में कोहराम मचा हुआ है। पल्ला झाडने के लिए अफसरों ने आनन-फानन में रेंंंजरर समेत पांच वनकर्मियों को निलंबित कर दिया। इससे राज्य शासन के भ्रष्टाचार पर जीरो बैलेंस की नीति पर अमल किया गया लेकिन जब इसी मामले बड़े अफसरो के खिलाफ कार्यवाही की बारी आई तो इस नीति से उच्च अधिकारियों ने हाथ खींच लिया । विभागीय मंत्री को फाइल भेज दी गई और कार्रवाई ठंडे बस्ते में चली गई। बताते हैं इसमें शामिल एक अफसर इसी माह से सेवानिवृत होने वाले हैं और इस अफसर को उनके पूरे कार्यकाल में एक ही पदोन्नति मिल पाई है तो विभागीय अफसर की भी उनके प्रति सहानुभूति है। वैसे भी जंगल में बिछाए गए शिकारी के जाल में हमेशा मैमने ही फंसते हैं लकड़बग्घे तो आजाद ही रहते हैं। 

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