राज्यशासन

MFPF; बस्तर में तेंदूपत्ता संग्रहण में गिरावट,बारिश से बह गया लाखों का हरा सोना,ठेकेदारी प्रथा खत्म होते ही सवालों के घेरे में लघु वनोपज संघ की कार्यशैली

लघु वनोपज निगम

रायपुर, इस वर्ष केवल बीजापुर ही नहीं पूरे राज्य में तेंदूपत्ता संग्रहण के आंकड़े चौंकाने वाले रहे हैं। जहां अन्य वन मंडलों में तेंदूपत्ता संग्रहण का प्रतिशत अपेक्षाकृत ज्यादा रहा है। वही बीजापुर वनमंडल में 12 हजार 226 बोरा तेंदूपत्ता यानी महज 10 प्रतिशत संग्रहण ही हो पाया है। यह आंकड़ा बीते वर्ष के मुकाबले बेहद निराशाजनक है, जब जिले में 81 प्रतिशत तेंदूपत्ता संग्रहण हुआ था। ठेकेदारी प्रथा खत्म होने के बाद वन विभाग को बस्तर में तेंदूपत्ता संग्रहण की जिम्मेदारी खुद निभानी थी, लेकिन अफसरों की लापरवाही और ढुलमुल रवैये के चलते सरकार की मंशा पर पानी फिरता नजर आ रहा है।

कमोबेश यही हालत समूचे बस्तर इलाके का है। बस्तर वनवृत में 1 लाख 17 हजार 588 मनकबोरा हरा सोना संग्रहित किया गया है। जिसमें सुकमा वनमंडल में 71 हजार, दंतेवाडा में 17 हजार एवं जगदलपुर में 17 हजार मानक बोरा शामिल है। कांकेर वृत में भी भानुप्रतापपुर को छोडकर अन्य वनमंडलों में भी संग्रहण काफी कम है। जबकि समूचे बस्तर में प्रदेश का आधा से ज्यादा पत्ता उत्पादित होता है। कंकेर वृत में 2 लाख 29 हजार मानक बोरा संग्रहित किया गया है। इसमें नारायणपुर में 17 हजार, कोंडागांव में 13 हजार एवं केशकाल में 21 हजार मानक बोरा शामिल है।

तेंदूपत्ता तोड़ाई की समय सीमा बढ़ाई थी

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने खासकर बीजापुर जिले के लिए विशेष सहूलियतें देते हुए तेंदूपत्ता तोड़ाई की समय सीमा बढ़ाई थी। साथ ही, इस साल तेंदूपत्ता संग्रहण दर को भी बढ़ाकर 5500 रुपये प्रति मानक बोरा कर दिया गया, जो पिछली दर 4000 से डेढ़ हजार रुपये अधिक है। इसके बावजूद उसूर और बीजापुर की समितियों में तेंदूपत्ता संग्रहण शुरू ही नहीं हो सका। मुख्यमंत्री की स्पष्ट चेतावनी और विशेष रियायतों के बाद भी वन विभाग के अफसरों ने न तो समय पर तैयारी की और न ही वनवासियों के साथ समुचित संवाद स्थापित किया।

ग्रामीणों ने पत्ता तोड़ाई में रुचि नहीं दिखाई-डीएफओ

बीजापुर डीएफओ आर. रामकृष्णा का बयान स्थिति की गंभीरता को उजागर करता है। उन्होंने कहा, “हम कुछ स्थानों पर गए थे, लेकिन ग्रामीणों ने पत्ता तोड़ाई में रुचि नहीं दिखाई। अब अगर कम खरीदी हुई है तो क्या मैं खुद जाकर पत्ता तोड़ूं?” उनका यह बयान न केवल गैरजिम्मेदाराना प्रतीत होता है, बल्कि सरकार की योजनाओं के प्रति उदासीनता भी दर्शाता है।

 वन विभाग के पास पर्याप्त संसाधन नहीं

जानकारों का मानना है कि  वन विभाग के पास न तो पर्याप्त संसाधन हैं और न ही जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन की कार्यकुशलता।  बीते दिनों विभाग को इसी का खामियाजा उठाना पड़ा और लाखों रुपये का पत्ता बारिश के पानी में  बह गया। अब सवाल यह उठता है कि क्या सरकार इस विफलता की जिम्मेदारी तय करेगी? क्या संबंधित अफसरों पर कार्रवाई होगी? और सबसे अहम, क्या अगले सीजन में ऐसा दोबारा न हो, इसके लिए कोई ठोस रणनीति बनाई जाएगी? इस वर्ष की असफलता ने वन उपज से आजीविका चलाने वाले हजारों वनवासियों की कमर तोड़ दी है। अब जरूरत है कि सरकार इस मामले को गंभीरता से लेते हुए तत्काल कदम उठाए।

बारिश से नदी में बह गया पत्ता

बीजापुर जिले के भोपालपटनम ब्लाक के इंद्रावती और चिंतावागु नदी किनारे खुले में सुखाए जा रहे हरा सोना यानी तेंदूपत्तों की हजारों गड्डियां बारिश के पानी में बह गईं। यह प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि स्पष्ट रूप से विभागीय लापरवाही का नतीजा माना जा रहा है, जिसका खामियाजा सैकड़ों ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है।

पूर्व चेतावनी के बावजूद विभाग सोता रहा
मौसम विभाग द्वारा पहले ही क्षेत्र में भारी बारिश की चेतावनी दी जा चुकी थी। इसके बावजूद तेंदूपत्तों को सुरक्षित स्थान पर नहीं ले जाया गया। खुले में नदी किनारे रेत पर गड्डियां सुखाई जा रही थीं, जिन्हें बारिश ने पूरी तरह बहा दिया। यह सवाल उठाता है कि क्या विभाग ने चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया या फिर इस कार्य के प्रति उसकी उदासीनता थी?

बीमा का भरोसा, लेकिन सवाल बरकरार
वन विभाग भोपालपटनम के एसडीओ नितीश कुमार रावटे ने दावा किया है कि सभी फड़ों का बीमा कराया गया था और नुकसान की भरपाई बीमा कंपनी करेगी। लेकिन यह प्रक्रिया कितनी पारदर्शी और तेज होगी, इस पर ग्रामीणों को संशय है। पहले भी कई बार देखा गया है कि बीमा कंपनियों से मुआवज़ा प्राप्त करने में महीनों लग जाते हैं।

तेलंगाना-महाराष्ट्र को फायदा, छत्तीसगढ़ को घाटा
विभाग की असफलता का असर तेंदूपत्तों की अवैध बिक्री पर भी पड़ा है। जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ से बड़ी मात्रा में तेंदूपत्ता तेलंगाना और महाराष्ट्र के बाजारों में बिना किसी रोकटोक के जा रहा था। विभाग न तो इसकी निगरानी कर पाया, न ही वैध संग्रहण पर नियंत्रण रख सका।

ग्रामीणों की मेहनत पर पानी फिरा
पोषड़पल्ली, करकावाया, बामनपुर, गोरगुंडा, अर्जुनल्ली जैसे इलाकों में सैकड़ों ग्रामीणों ने तपती गर्मी में पत्तों को तोड़ा, बांधा और सुखाया। इनकी मेहनत एक झटके में बह गई। न तो उन्हें मेहनताना मिला, न ही पत्तों की कीमत। कई ग्रामीणों ने विभाग पर आरोप लगाया कि समय रहते उन्हें चेतावनी नहीं दी गई और पत्तों को स्थानांतरित करने की कोई व्यवस्था नहीं थी।

Related Articles

Back to top button