कानून व्यवस्था

तारीख पर तारीख और जमानत…..

उच्चतम न्यायालय ने जमानत की पैरवी करते हुए स्पष्ट किया है कि जमानत कब, क्यों और किसे देना चाहिए। जमानत, नियम है और जेल  विकल्प है। उच्चतम न्यायालय ने ये भी कहा है कि अगर जमानत का प्रकरण सामने आता है तो नियमानुसार विचारण  होना चाहिए। सालो पहले निचले अदालत के न्यायधीश जमानत देने के पक्षधर रहा करते थे। वे जानते थे कि न्याय मिलने के लिए लगने वाला समय बहुत अधिक होता है। गैर जमानती प्रकरण में जमानत देने में न्यायपूर्वक समय के बाद जमानत मिल जाया करती थी।

उच्च और उच्चतम न्यायालय में जैसे जैसे अधिवक्ताओं की संख्या बढ़ते गई।एक सुनियोजित विचारधारा  न्याय व्यवस्था में पनपने लगी कि निचले न्यायलय में जमानत दिए जाने के मामले में न्याय के बजाय दूसरे तरीके अपनाए जा रहे है।  निचले अदालत में  जमानत न देने की परंपरा शुरू हो गई। पिछले दस साल में जमानत देने के रिकार्ड उठाया जाए तो निचली अदालत से   बामुश्किल बीस फीसदी जमानत हुई है और अस्सी फीसदी जमानत उच्च अदालतों से हुई है। निचले  अदालतों पर एक अज्ञात भय बैठा दिया गया था। ऐसे आपराधिक प्रकरण जिनमे चार साल से अधिक अवधि की सजा का  प्रावधान  भारतीय दण्ड संहिता में है उनमें  अधिकतम सजा  तीन वर्ष से कुछ अवधि  की दी जाने लगी। तीन वर्ष से अधिक सजा होने पर निचली अदालत जमानत नहीं  दे सकती है। ये बाते भी  न्यायिक परिसर में गूंजती थी कि जमानत और सजा के मामले में उच्च न्यायालय के द्वारा समीक्षा की जाती है। ये सच है या नहीं, इसकी प्रमाणिकता नही है।

जेल में बंद आरोपी, तब तक अपराधी नहीं माना जाता है जब तक सजा नही हो जाती है वह भी अंतिम न्यायालय से निर्णय होने तक।ऐसी परिस्थिति में जब तारीख पर तारीख  की बेबसी हो तब जमानत दिया जाना प्राकृतिक न्याय की श्रेणी में आ जाता है। आगे आगे देखिए और क्या सुधार होता है।जमानत देने के पीछे दो ही तर्क होते है।पहला आरोपी के फरार होने की संभावना नहीं है दूसरा वह साक्ष्य को प्रभावित नही करेगा। 

जमानत देने का एक शानदार तरीका स्वास्थ्यगत कारण है।  इसका उपयोग कम दुरुपयोग ज्यादा हो रहा है। जेल दाखिल होते ही पहुंच वाले आरोपी बीमार पड़ने लगते है। जेल के बाहर उनकी बीमारी हिस्ट्री तैयार हो जाती है। थोड़े समय में जेल अस्पताल उन्हे बड़े अस्पताल में रिफर कर देते है। काम हो जाता है।इस मामले में बड़े अदालतों ने शानदार अभ्यास कर जमानत देने में पसीना छुड़वा दिया है।  आप पार्टी के मंत्री जैन साहब उदाहरण है।  आजकल जमानत के बजाय स्वास्थ्य कारणों में अंतरिम जमानत का दौर है।  इसके बावजूद जमानत दिया जाना चाहिए क्योंकि न्याय में देरी भी अन्याय है।

स्तंभकार-संजय दुबे

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