कानून व्यवस्था

हिंदुस्तानी- 2 ……………..

हाल ही सिनेमाघरों में कमला हासन की एक फिल्म लगी है हिंदुस्तानी- 2 । नेताओं और अधिकारियो सहित  व्यापारियों, बिल्डर्स द्वारा भ्रष्ट्राचार का खुलासा है। हिंदुस्तानी द्वारा  प्रतिकात्मक रूप से देश के बड़े उद्योगपतियों को भी दिखाकर बताना चाहा है कि दूध का धुला कोई नही है। इस फिल्म में पंजाब लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के कारगुजारियो को दिखाते हुए मौत की सजा देने का भी दृश्य है।

 इस फिल्म के अंत में भ्रष्ट्राचार से मुक्त कराने वाले युवक युवती हिंदुस्तानी के कहने पर अपने ही परिवार के भ्रष्ट आचरण का साक्ष्य जुटाकर  उनके विरुद्ध कार्यवाही कराते है ,ये भी साहसिक कार्य दिखाया गया है। दरअसल  फिल्म के निर्देशक शंकर, ने कहानी बहुत पहले लिखी होगी । तीन साल पहले छत्तीसगढ़ आ जाते तो उनको पंजाब लोक सेवा आयोग  और वहां चयन में किए गए भ्रष्ट्राचार के बजाय छत्तीसगढ़ की हकीकत दिखाने में गुरेज नहीं होता।

 देश के केंद्र और राज्यों  की परीक्षा एजेंसियों द्वारा लिए जाने वाली कोई भी परीक्षा, निर्विवाद नही रह गई  है। छत्तीसगढ़ की लोक सेवा आयोग को “लज्जाहीन सेवा आयोग” कहने में कोई हिचक नहीं होना चाहिए जिसने बीते तीन साल में मर्यादा को तार तार कर रख दिया। जब अध्यक्ष ,सदस्य सहित अधिकारियो का चयन ही डिप्टी कलेक्टर, डीएसपी सहित नायब तहसीलदार जैसे पदो को  बेचने के लिए किया गया हो तो होनहार परीक्षार्थी असफल ही होंगे। उनका चयन हो ही नहीं सकता है। सारे नेता, प्रथम श्रेणी के अधिकारी, व्यवसाई लोगो ने लोक सेवा आयोग छत्तीसगढ़ में निकले पदों मे या तो पहुंच का उपयोग कर या पैसे का उपयोग कर सीट खरीदे है।

 इस राज्य में केवल नेता, अधिकारी अथवा व्यवसाई के पुत्र- पुत्री या रिशेतदार मेघावी नही है बल्कि आम गरीब परिवार में होनहार मेघावी बच्चे है। ज्ञान में उनमें प्रतिस्पर्धा करने की शक्ति है, सामर्थ्य है,लेकिन  उनका दुर्भाग्य है कि उनका कोई रिश्तेदार नेता नहीं है, अधिकारी नहीं है व्यवसाई नहीं है। ऐसा मेघावी छात्र सीट खरीदने की राशि का जुगाड नहीं कर सकता है। इसका परिणाम क्या यह मिले कि उसका चयन हो ही नहीं और दीगर लोग अयोग्य होने के बावजूद सीट ले लें।

 छत्तीसगढ़ में 2003 के लोक सेवा आयोग पर उठी उंगलियां कानून के दांव पेच में ऐसे फंसी है कि एक लड़की को लड़ते लड़ते 21साल हो गए है। व्यवस्था के खिलाफ जाने पर भ्रष्ट नेता और अधिकारी एकजुट होकर आक्रमण करते है। सरकारी पद अयोग्य होने के बावजूद योग्य होने वाला अधिकारी  रिश्वत लेकर अपने को बचाए रखने के लिए  महंगे वकील जुटा लेता है । 2003 लोक सेवा आयोग के धांधली का मामला सुप्रीम कोर्ट में है। तारीख पर तारीख का खेल जारी है।  पाठको को याद होगा कि छत्तीसगढ़ राज्य सेवा का अध्यक्ष अशोक दरबारी को राज्यपाल ने निलंबित कर दिया था। दरबारी सजा पा गए लेकिन 2003 के ऐसे अयोग्य लोग आज छत्तीसगढ़ में आईएएस अवार्ड पा चुके है। प्रश्न उठता है तो मामला न्यायालयीन है कह कर मौन पसर जाता है।

 बीस साल बाद  एक बार फिर छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष सहित कुछ अन्य लोगो के विरुद्ध सीबीआई ने  केस रजिस्टर किया है। अध्यक्ष और सचिव के यहां छापेमारी भी हो गई है। लोक सेवा आयोग का कार्यालय भी छान लिया गया है। जांच और न्यायिक कार्यवाही दीर्घ समय लेती है ये प्रशासनिक बाध्यता है लेकिन अब की जांच भी 2003 के समान चली तो न जाने कितनी प्रीति डोंगरे न्याय से वंचित हो जायेगी।

सीबीआई की जिम्मेदारी बनती है कि टोमन सिंह सोनवानी के पूरे कार्यकाल में हुए सभी परीक्षाओं के चयन प्रक्रिया, इंटरव्यू बोर्ड, चयनित परिक्षार्थियो के प्रारंभिक परीक्षा और मुख्य परीक्षा  के चयनित परीक्षा केंद्र सहित उनके पेपर की जांच सूक्ष्मता से करे। निश्चित रूप से टोमन  सिंह सोनवानी का कार्यकाल मेघावी छात्रों के लिए बहुत ही बुरा कार्यकाल रहा है। उनके भविष्य से तीन साल खेले जाने वाले व्यक्ति और उसके धन जुगाड़ू प्रवृति से लाभान्वित होने वाले चेहरे सामने आने चाहिए। इसके अलावा ऐसे अयोग्य अधिकारी, जो धन और पहुंच से मजे कर रहे है ,उनके विरुद्ध भी कड़ी कानूनी कार्रवाई होना चाहिए। केवल रिश्वत लेना ही नहीं देना भी अपराध है।

स्तंभकार-संजयदुबे

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