छत्तीसगढ़ का राज-काज ‘राज की बात’

नारायण भोई
साहब का दर्द
छत्तीसगढ़ के कुछ आईएएस अफसर इन दिनों जेल में है तो कुछ बेल में है। राज्य के आईएएस अफसरों की छवि लगातार धूमिल हो रही है। देश की राजधानी में भी इस जमात के अफसरों की किरकिरी हो रही है। ऐसे में चिकित्सा पेशा को छोड़कर आईएएस बने एक अफसर को अब पछतावा हो रहा है। कम से कम मरीज तो उनका इज्जत करते। कुछ माह पहले उनके बैच के चिकित्सकों का स्नेह सम्मेलन यूपी में हुआ। इसमें अमेरिका से आए उनके एक दोस्त से उनकी मुलाकात हुई जो स्वयं के निजी विमान से आए हुए थे । उनकी शान शौकत को देखते हुए साहब को अब चिकित्सा पेशा छोड़ने का मलाल हो रहा है।
महिला ऑपरेटर की कार
खाद्य विभाग के अमले में एक महिला ऑपरेटर की कार की चर्चा जोरों पर है। अफसर के पास गाड़ी नहीं है लेकिन ऑपरेटर फर्राटे के साथ राजधानी से भिलाई आना-जाना करती है। राज की बात यह है म्कि खाद्य विभाग में चावल घोटाले की जांच चल रही है। इसमें अफसरों की टीम लगी हुई है। दस्तावेज के साथ फाइल तैयार करने की जिम्मेदारी इस महिला कंप्यूटर ऑपरेटर को दी गई है जो आंकड़े तैयार कर झूठ को सच में तब्दील करती है। ऐसे में इस ऑपरेटर की पूछ परख बढ़ना स्वाभाविक है। इसलिए उसे विभाग की ओर से किराए की गाड़ी भी उपलब्ध कराई गई है ताकि उसे आना-जाना करने में कोई दिक्कत ना हो। आपरेटर की आपदा में अवसर को देखते हुए साथी कर्मचारी और अफसर मायूस है, सरकारी बस में जो इन्हें आना-जाना करना पड़ता है।
16 साल से अपडेट नहीं
सरकारें आई-गई मगर राजधानी के पुराने धमतरी रोड पर स्थित स्वागत बिहार में भूखंड आवंटन का मामला 16 साल से लंबित है। कुछ भूखंड धारी स्वर्ग सिधार चुके है। अधिकांश हितग्राही उम्र के अंतिम पड़ाव में है। रजिस्ट्री के बाद भी इन्हें भूखंड नहीं मिल पा रहा है क्योंकि गड़बड़ी के चलते स्वागत बिहार की लेआउट निरस्त कर दी गई है। अभी हाल ही मई माह में संपन्न राज्य शासन के सुशासन तिहार में एक पीड़ित व्यक्ति ने आवेदन लगाया जिस पर उसे मोबाइल पर आश्चर्यजनक जानकारी दी गई कि नगर निगम की ओर से लेआउट पर काम किया जा रहा है। अभी और कोई अपडेट नहीं है। उसने 16 साल पहले भूखंड की खरीदी की थी। बात यह है कि इस मामले की जांच की जिम्मेदारी अब रायपुर विकास प्राधिकरण को दी गई है अभी तक हितग्राहियों को नए सिरे से भूखंड का आवंटन नहीं हुआ है। सरकार का भी इस पर कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंंकि अब यहां पर बिल्डर भी नहीं है जो फाइल को आगे बढाने में धक्का दे सके।
इंजीनियर की नजर
लोक निर्माण विभाग के एक इंजीनियर की नजर राजधानी के चर्चित स्काईवाक के कार्यों पर है। राजधानी से सरगुजा स्थानांतरित किए जाने के बाद भी वह राजधानी छोड़ने के मूड में नहीं है। दो महीने से मेडिकल अवकाश पर चल रहे हैं लेकिन वे मंत्रालय का चक्कर लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ते, जबकि विभागीय सचिव को उनका चेहरा भी देखना पसंद नहीं है। राज की बात यह है कि इंजीनियर साहब पुराने मंत्री जी के साथ काम कर चुके हैं और फिर से उनके साथ निभाना चाहते हैं। स्काईवाक के पुनर्निर्माण के लिए 37 करोड रुपए की मंजूरी मिल गई है। ऐसे में इंजीनियर को अपने अनुभव का लाभ दिलाना वक्त का तकाजा भी है जब केग की रिपोर्ट में भी इसे अनुपयोगी बताया जा रहा हैं।
अफसर की किस्मत
हर पांच साल में नेताओं की किस्मत बनाने- बिगाड़ने वाले दफ्तर में के अफसरों का भाग्य भी चमकता रहता है। सौभाग्यशाली नेता अपने चहेते अफसरों को तत्काल फील्ड में पोस्टिंग दिला देते हैं। कोई कलेक्टर बन जाता है तो कोई निगम मंडल में एमडी बन जाता है लेकिन यहां तैनात एक छोटे अफसर का भाग्य पर ताला लगा हैं जो खुलने का नाम नहीं ले रहा है। यहां पदस्थ रहते वे चुनाव कार्य में दक्ष हो चुके है। कोई भी बड़ा अधिकारी उसे छोड़ना नहीं चाहता, उसके भरोसे वे अपनी किस्मत चमकाकर निकल जाते हैं। हालत यह है कि अभी राज्य प्रशासनिक सेवा के 75 अफसर की तबादला सूची में भी इस अफसर का नाम शामिल नहीं हो पाया। हालत यह है कि अफसर अब अपने मूल कार्य को भी भूलने लगे हैं फील्ड में पदस्थापना जो नहीं हो पा रही है।
अफसर का सचिव प्रेम
सचिव चाहे छोटा हो या बडा, सचिव होता तो सचिव ही है। यदि उससे प्रेम -मोहब्बत नहीं है तो नौकरी को खतरे में डालने के समान है। यह अलग बात है कि पंंच- सरपंचों की नाराजगी के बीच पंचायत सचिवों से अफसर की सेटिंग भारी पड़ गया और अब उन्हें हटा दिया गया है। उनकी पदस्थापना अभी नहीं हुई है, पर उनकी जगह आईएएस अफसर की तैनाती की गई है। माना जा रहा है कि अब कलेक्टर सीईओ में अच्छी तालमेल होगी पंच -सरपंच नाराज नहीं होंगे। बहरहाल जिले के पंचायत सचिवों के साथअफसर का प्रेम ऐसा था कि सरपंच भी कलेक्टर से शिकायत करते थक जाते लेकिन उनका बाल बांका नहीं होता था बल्कि सचिव और ताकतवर बन जाते थे। फिर भी अफसर ने जिले में टिक कर लंबी पारी खेली। मई माह में सुशासन त्यौहार के दौरान कलेक्टर से उनकी दुरियां बढ़ने लगी क्योंकि हर जगह सरपंच उनसे सचिवों की शिकायत करते नहीं थकते थे। बाद में कलेक्टर भी बिना अफसर को लिए जिले का दौरा करने लगे थे। खैर अंत भला तो सब भला… आखिरकार जिले से उनकी छुट्टी हो गई। अब आईएएस अफसर के नाम से ही सेटिंग मास्टर पंचायत सचिवों की चेहरे से हवाईयां उड़ने लगी है।