धारा 370; कितना उचित,कितना अनुचित
तपन चक्रवर्ती
देश का ‘‘मणी मुकुट‘‘ कश्मीर को माना गया हैं। प्रकृति की गोद में बर्फ की चादर ओढ़कर, इठलाती सौंदर्यमयी कश्मीर अपने मेहमानों को झीलों में छिपी सुंदरता से परिचय कराने की पंरपरा है। पूरी दुनियां प्रकृति की भव्य सुंदरता को अपनी गीतों में कश्मीर को प्रेमिका का दर्ज दिये है। तानाशाह शासक जब सत्ता में आसीन होता है, तब वह कुढ़ता का परिचय हमेशा ‘‘सुंदर चेहरे‘‘ को पहले नुकसान पहुचाता है। अंग्रेजी शासक द्वारा देश को आजादी देते समय, सोंदर्यता की मालीकाना को जटील बनाकर गये है। परिणाम स्वरूप जटिलता लिये कश्मीर की सुंदरता को सत्ता के लोलुप राजनेताओं द्वारा लगातार खरोंचा जा रहा हैं।
आजादी के बाद 26 अक्टूबर 1947 को राजा हरिसिंग ने कश्मीर को स्वतंत्र भारत में शामिल करने हेतु समझोतें में हस्ताक्षर किये थें। उस समय से कश्मीर हिंदुस्तान में शामिल है। कश्मीर के पूर्व निवासी हिंदु धर्म के अनुयायी थे। कश्मीरी पंडितों का संस्कृति 6000 साल से अधिक पुरानी है। किंतू आज कश्मीरी पंडित धर्म के मकडजाल में फंसकर दोयम दर्जे की जिंदगी जीने को मजबूर है। राजीव गांधी सरकार से इस्तीफा देकर वी.पी. सिंह के जनमोर्चा में 1987 में मुफ्ती मो. सईद शामिल हुए और 1989 से 1990 में केन्द्र के जनता दल सरकार में गृहमंत्री रहकर, कश्मीर के सबसे पुराने कश्मीरी पंण्डितों को रातो रातो बेघर कर दिये गये। किंतू आज भी कुछ देश प्रेमी कश्मीर पंण्डितों को नारकीय जिंदगी जीने को मजबूर कर दिये गये है। वजह सिर्फ सत्ता के लालची राजनेताओं द्वारा कश्मीर की जनता को, सुनहरे सपनो के वादों पर 1954 से लगातार 370 धारा के अलावा 35 (अ) के विरूद्ध विरोध दर्ज करते हुए, कश्मीर को अशांत एवं बंदूक के सायें में रखा गया है। कई बार गडबंधन की सरकार बनाकर सिर्फ स्वार्थ साधने की कोशिशों में लगे रहें। किन्तू अपनी नकामी को देखकर, देश के लोकतंत्र को तालों में बंद करते हुए, कश्मीर से 370 धारा एवं 35 (अ) को हटाने में सफल रहें एवं सत्ता की लालच में लार टपकाते हुए खूब नारे भी लगाये कि – ‘‘अब हम कश्मीरी दुल्हन लायेगें और अपने सपनों का घर बसायेंगें‘‘।
जम्मू कश्मीर से 370 धारा एवं 35 (अ) को 05 अगस्त 2019 से हटाने के पश्चात् भारत सरकार को विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इसी संदर्भ पर सुप्रीम कोर्ट में दो दर्जन मामले भी दर्ज हुए है। जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने हेतु सविंधान सशोंधन चुनोती का मामला 2019 में, सविंधान पीठ को सौपा गया था। लेकिन अब तक सुनवाई नहीं हुई है। नतीजतन सुप्रीम कोर्ट में 370 धारा हटाने के विरोध में, सभी याचिकाओं का 11 जूलाई को प्रथम सुनवाई हुई है। जिसमें केंन्द्र सरकार यह दलीले दी गई है कि तीस वर्षाे से जम्मू कश्मीर आतंकवादी को झेला है। किन्तू जब से 370 धारा एवं 35 (अ) अनुच्छेद के हटने से जम्मू कश्मीर में अमन-चैन कायम है। इस अभिप्राय को सुप्रीम-कोर्ट से गौर करने हेतु केन्द्र सरकार द्वारा निवेदन किया गया है। इस पर माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा कड़ी रूख अपनाते हुए कहा गया है कि हमारे पास फायदा नुकसान को सुनने का समय नहीं है। हमें तो सिर्फ यह देखना है कि 370 धारा एवं 35 (अ) अनुच्छेद का हटना संवैधानिक है अथवा नहीं। अत: अगामी 02 अगस्त 2023 से लगातार इस प्रकरण पर सुनवाई की जावेगी। सिर्फ सोमवार और शुक्रवार को छोड़कर सुनवाई फैसला होने तक जारी रहेगा।
भारतीय संविधान के 21वें भाग में उल्लेखित है कि 370 धारा एवं 35 (अ) अनुच्छेद अस्थायी, संक्रमणकालीन एवं कश्मीर को स्वयत्तता प्रदान करता है। जम्मू कश्मीर के संविधान सभा को स्थापना काल से उपरोक्त 370 धारा एवं 35 (अ) को लागू करने का अधिकार है। अथवा निरस्त करने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है। किन्तु संविधान सभा से 370 धारा एवं 35 (अ) को निरस्त करने के अनुशंसा बैगर ही संविधान सभा को भंग कर दिया गया है। 370 धारा एवं 35 (अ) भारतीय संविधान का एक विशेष अंग है। संविधान द्वारा जम्मू कश्मीर का संविधान सभा (विधानसभा) का कार्यकाल 06 वर्षाे का रहता है। इस अनुच्छेद 370 के अन्तर्गत 1959 से जनगणना कानून लागू की गई है एवं इसके अतिरिक्त 1960 से जम्मू कश्मीर से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई हुई सुप्रीम-कोर्ट के द्वारा होने लगा।
सन् 1966 से निर्वाचित जनप्रतिनिधि के अतिरिक्त ‘‘सदर-ऐ-रियासत‘‘ के जगह राज्यपाल भेजने का अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया है। अनुच्छेद 35 (अ) के अन्तर्गत जम्मू कश्मीर के विधान मंडल को ‘‘स्थायी निवासी‘‘ परिभाषित करने का अधिकार दिया गया है। इस अधिनियम के अन्तर्गत सरकारी नौकरी, अचल संपत्ति का अधिग्रहंण, राज्य में स्थापित होना एवं राज्य सरकार दी जाने वाली सुविधाओं का लाभ लेना शामिल है। कश्मीर को विशेष दर्जा दिये जाने का विरोध, देश विरोधी ताकतों द्वारा लगातार किया जा रहा है। आज वहीं ताकत अपने मंसूबे में कामयाब भी हो गयें है एवं साथ ही कायराना अंदाज में देश के संविधान को कुचलने का लगातार प्रयास जारी रखें हुए है। जिसके परिणाम स्वरूप देश में अराजकता की मजबूती के लिए, सभ्य समाज में वैयमनस्थता का प्रचार-प्रसार जारी रखें है।
( यह लेखक के निजी विचार है )