हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: विवाह में मिला स्त्रीधन सिर्फ महिला की संपत्ति, पति का अधिकार नहीं
बिलासपुर, छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि विवाह से पहले, विवाह के दौरान या फिर उसके बाद महिला को उपहार में दी गई संपत्तियां उसकी स्त्रीधन संपत्तियां हैं। वह अपनी खुशी के लिए उसे खर्च करने का पूर्णत: अधिकार रखती है। पति अपने संकट के समय इसका उपयोग कर सकता है, लेकिन फिर भी उसका नैतिक दायित्व है कि वह अपनी पत्नी को उसका मूल्य या संपत्ति लौटाए। स्त्रीधन संपत्ति, संयुक्त संपत्ति नहीं बन सकती। इस पर पति अधिकार नहीं जता सकता है।
कुटुंब न्यायालय के एक मामले में लिए गए निर्णय को चुनौती देते हुए दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने उक्त महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। अब यह न्याय दृष्टांत बन गया है। सरगुजा जिले के लुंड्रा थाना क्षेत्र निवासी बाबूलाल यादव ने परिवार न्यायालय अंबिकापुर के फैसले को 23 दिसंबर, 2021 को अपने अधिवक्ता के माध्यम से छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता ने धारा 27 का हवाला देते हुए बताया कि स्त्रीधन वापसी के लिए स्वतंत्र आवेदन जमा करने की अब तक व्यवस्था नहीं है।
स्वतंत्र आवेदन के माध्यम से दिए गए फैसले पर आपत्ति जताते हुए रद करने की मांग की थी। परिवार न्यायालय अंबिकापुर में याचिकाकर्ता की पत्नी ने दहेज के अलावा परिचितों व स्वजन द्वारा उपहार में दी गई संपत्ति को वापस दिलाने की मांग की थी। इस पर परिवार न्यायालय ने संपत्ति वापस करने के निर्देश दिए थे। स्त्रीधन वापसी के संबंध में पूर्व में दायर याचिका की सुनवाई के दौरान छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की दो डिवीजन बेंच ने अलग-अलग फैसला सुनाया था।
एक बेंच ने स्त्रीधन वापसी के लिए स्वतंत्र आवेदन को सही ठहराया था और दूसरी डिवीजन बेंच ने स्वतंत्र आवेदन के प्रविधान को गलत ठहराते हुए याचिका खारिज कर दी थी। एक ही मामले में दो डिवीजन बेंच के अलग-अलग फैसले को ध्यान में रखते हुए चीफ जस्टिस सिन्हा ने लार्जर बेंच का गठन करने का निर्देश रजिस्ट्रार जनरल को जारी किया था। याचिका की सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा के निर्देश पर तीन सदस्यीय पीठ का गठन किया गया। चीफ जस्टिस सिन्हा, जस्टिस संजय के अग्रवाल व जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की बेंच में मामले की सुनवाई हुई।