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पूजा एमबीबीएस…………..

 2003 के साल में संजय दत्त अभिनीत फिल्म आई थी – ‘मुन्ना भाई एम.बी.बी.एस’ ।  अपने स्थान पर मेडिकल कालेज के होनहार विद्यार्थी को बैठाकर खुद के चयन कराने से लेकर सच के सामने आने तक की  फिल्म थी।  शिक्षा जगत में न जाने कितने  मुन्ना भाई होंगे जो अलग अलग क्षेत्र में आज सफल होकर कितने होनहार लोगो के सपनों पर पानी फेरे हुए है।

 मुन्नाभाई, मुन्नी बाई के अलावा तीन और तरीके है पिछले दरवाजे से  तकनीकी शिक्षा और सरकारी सेवा में आने के। पहला है कि बोगस जाति सर्टिफिकेट, बोगस विकलांगता सर्टिफिकेट और तीसरा है खिलाड़ी सर्टिफिकेट। वर्तमान में डा पूजा खेड़कर, के विकलांग होने के मामले को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ है उसके चलते केंद्र और राज्य सरकार को सतर्क होने की जरूरत है। इसके साथ साथ प्रवेश के समय प्रमाणित सर्टिफिकेट के जांच के बाद एक निश्चित समयावधि के बाद इनकी प्रमाणिकता की जांच भी होने की प्रक्रिया अपनाने की जरूरत है ।

  पूजा खेड़कर की पिछड़ी जाति और उनके विकलांगता सर्टिफिकेट को लेकर  कितने खुलासे हो रहे है। उनकी विकलांगता सर्टिफिकेट एक दिन में बन गया। 2019 में पूजा भारतीय राजस्व सेवा के लिए चयनित हुई। उस समय कोरोना का बहाना बनाकर फिटनेस परीक्षा में शामिल नहीं हुई। 2022 में विकलांग सर्टिफिकेट और जाति प्रमाण पत्र के बल पर संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में  821 वां स्थान अर्जित  कर आई ए एस के लिए पात्र हो गई।

 हमारे देश में फर्जी तरीके से जाति, विकलांग, खिलाड़ी सर्टिफिकेट्स जिनके बल पर  तकनीकी शिक्षा और सरकारी नौकरी में फर्जी तरीके से घुसने वाले लोगो की बहुत बड़ी संख्या है। ये लोग शैक्षणिक रूप असक्षम होने के कारण प्रतियोगी परीक्षा में अंकों का लाभ लेने के लिए जाति बदलते है। विकलांग बनते है, खिलाड़ी बनते है। छत्तीसगढ़ के अनेक विभाग में ऐसे अधिकारी मिलेंगे जो इस प्रकार का सर्टिफिकेट्स बना कर योग्य जाति और खिलाड़ी का हक मार दिए। 

विकलांग सर्टिफिकेट जो पूजा खेड़कर ने दिया है उसमे आंख और मानसिक रूप से परेशान होने वाली बीमारी का हवाला है।स्वास्थ्य मंत्रालय विकलांगता के संबंध में नई नई बीमारी को भी सम्मिलित करती है। नई  बीमारियां ऐसी है जो मानसिक रूप से  व्यक्ति को क्षणिक समय के लिए बीमार बना देता है। इससे रहन सहन में कोई फर्क नहीं पड़ता है । मेंटल डिसऑर्डर के लिए कोई मापदंड नहीं है। इस कारण मानसिक विकलांगता का प्रतिशत भी समय समय पर अलग अलग होता है।

 विकलांगता के लिए पंद्रह माह का एक निगरानी समयावधि होती है। इसका छत्तीसगढ़ में पालन किया गया है अथवा नहीं इसके लिए  एक जांच कमेटी बनाया जाना चाहिए। हर दो साल में  केवल 40 प्रतिशत विकलांग रिपोर्ट वालों का परीक्षण होना अनिवार्य किया जाना चाहिए। जिस प्रकार सौ अपराधी छूट जाए लेकिन एक निर्दोष को सजा नही होनी चाहिए वैसे ही भले ही सौ योग्य व्यक्ति को नौकरी या तकनीकी शिक्षा में अवसर न मिले लेकिन एक अयोग्य व्यक्ति को तकनीकी शिक्षा अथवा सरकारी नौकरी नहीं मिलना चाहिए।

 मुन्नाभाई और मुन्नीबाई एम बी बी एस न हो पाए। पूजा खेड़कर कम से कम ये नसीहत तो केंद्र और राज्य की सरकार को दे रही है। सरकारों को फर्जी जाति, विकलांगता और खिलाड़ी सर्टिफेट्स देने वाले जिम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही  में भी पीछे नहीं हटना चाहिए।

कुछ समय पहले नीट की पीजी परीक्षा में लक्ष्मी चौधरी को सफदरगंज मेडिकल कालेज के सौ फीसदी विकलांग प्रमाण पत्र के चलते  रोक दिया गया था। लक्ष्मी ने न्यायालय का सहारा लिया और न्यायालय के निर्णय पर एम्स ने पुनः परीक्षण कर सफदरगंज मेडिकल कॉलेज की रिपोर्ट को गलत साबित कर दिया। एक तरफ लक्ष्मी जैसे लोग है जो विकलांगता के खिलाफ युद्ध करते है। दूसरी तरफ पूजा खेड़कर जैसे लोग है जो  तकनीकी शिक्षा अथवा सरकारी नौकरी पाने के लिए फर्जी जाति,विकलांग अथवा खिलाड़ी सर्टिफिकेट्स बनवा कर चोर दरवाजे से अवसर पाकर दूसरों का हक छीनते है।

स्तंभकार-संजय दुबे

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