
1932 से लेकर 2025 तक भारत की ओर से खिलाड़ियों ने देश का प्रतिनिधित्व किया है। इनमें से खिलाड़ी भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान बने । खिलाड़ियों और कप्तानों में बहुत चुनिंदा नाम है जिनके नाम के आगे सफलता और असफलता भी जुड़ी हुई है।
भारतीय क्रिकेट को एक खिलाड़ी दो युगों के बीच बांटते है वे है सुनील गावस्कर। गावस्कर भारत सहित दुनिया के पहले बल्लेबाज रहे जिन्होंने अपने युग में सबसे पहले दस हजार रन के आंकड़े को छुआ था। टेस्ट खेलने के मामले 100वें टेस्ट की सीमा रेखा को पार कर 125 टेस्ट खेले थे।अपने से पहले सबसे अधिक 40 टेस्ट में कप्तानी करने वाले मंसूर अली खान पटौदी के रिकॉर्ड को तोड़ 47 टेस्ट में कप्तानी का रिकॉर्ड बनाया था।
गावस्कर युग के बाद कपिलदेव ने आक्रामक कप्तानी के तेवर दिखाए। कपिलदेव के पैटर्न में दो ही कप्तान ऐसे हुए जिन्होंने जीतने के लिए जोखिम मोल लिया। पहले सौरव गांगुली थे और दूसरे रहे विराट कोहली। आज इसी विराट कोहली के टेस्ट केरियर के खुद के द्वारा खत्म होने की चर्चा है।
हर खिलाड़ी जानता है कि उसका एक दौर होता है। विराट का भी दौर था। अगर कोरोना काल में साल बर्बाद नहीं हुए होते तो दुनिया भर के क्रिकेट पंडितों ने संभावना जताई थी कि सचिन तेंडुलकर के सौ शतकों का रिकॉर्ड विराट कोहली तोड़ देंगे।
क्रिकेट सहित दुनिया में चूंकि क्योंकि परंतु नहीं लगते। विराट के तीन साल बर्बाद हुए और कालांतर में इंटरवल के बाद में कोहली का विराट स्वरूप यदा कदा देखने को मिला।
विराट, जूनियर वर्ल्ड कप क्रिकेट से तराशे गए हीरे थे। उन्हीं के साथ स्टीव स्मिथ और केन विलियम्सन जैसे खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चमके थे। देखते देखते विराट स्वभाव से आक्रामक और बैटिंग में स्वभाव के विपरीत शतरंज के खिलाड़ी के समान बिसात बिछाने वाले रहे। टेस्ट के अलावा, वनडे और टी ट्वेंटी में भी बेजोड़ ही थे।
विकेट के बीच दौड़ते दौड़ते उनकी उम्र 23साल से 36 साल की हो गई। इन सालों में विराट कोहली 123 टेस्ट खेलकर 9230 रन बना लिए। 30 शतक भी लगा लिए। 68 टेस्ट में कप्तानी भी कर सर्वाधिक 40 टेस्ट भी जीत लिए। 302 वनडे खेल कर 14181 रन बना लिए। वे 95 वनडे में कप्तानी कर 65 में जीते। 50टी ट्वेंटी मैच में 30 जीते। कुल मिलाकर संतोष ही संतोष।
ऐसी स्थिति में अब विराट कोहली टेस्ट फॉर्मेट को राम राम कह दिया, ये उनका सही निर्णय है।
वैसे भी 35 साल के बाद खिलाड़ी जीवन का उत्तरार्ध आ ही जाता है। इसके बाद के सालों में अनुभव के बल पर थोड़ी बहुत सफलता मिल भी सकती है लेकिन स्थाई रूप से अच्छा खेलने वाले से अस्थाई बेहतर प्रदर्शन गले से नीचे नहीं उतरती है। कपिलदेव, सचिन तेंडुलकर, ऐसे ज्वलंत उदाहरण है। जिन्हें केवल रिकॉर्ड बनवाने के लिए बोर्ड ढोते रहा। ये दोनों खिलाड़ी ऑस्ट्रेलिया में होते तो पचास टेस्ट पहले ही बाहर हो जाते। विराट कोहली कम से कम ऐसे तो नहीं बने।
स्तंंभकार-संजयदुबे