राजनीति

CPIM;प्रकाश और वृंदा करात माकपा के पोलित ब्यूरो से बाहर, मरियम अलेक्जेंडर बेबी बने पार्टी के नये महासचिव  

बदलाव

नईदिल्ली, वर्ष 2004 का लोकसभा चुनाव देश की राजनीति को नई दिशा देने वाला चुनाव था. वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के बाद हुए चुनाव में पू्र्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार का इंडिया साइनिंग का नारा फ्लॉप हो गया था. एनडीए हार गया. यूपीए को शानदार जीत मिली. लेकिन, यूपीए की इस जीत में एक बड़ी हिस्सेदारी वामपंथी दलों की थी. 2004 के लोकसभा चुनाव में वाम दलों को कुल 59 सीटें मिली थीं. उस चुनाव में केवल माकपा को 43 और भाकपा को 10 सीटें मिली थीं, जो भारत के संसदीय इतिहास में वाम दलों की सबसे बड़ी जीत थी. कांग्रेस पार्टी को अपने दम पर 145 सीटें मिली थीं. फिर वाम दलों और अन्य पार्टियों के साथ मिलकर यूपीए गठबंधन ने सरकार बनाई. वाम दलों को मिली इस बड़ी जीत का श्रेय माकपा के युवा महासचिव प्रकाश करात को मिली. प्रकाश करात की छवि खांटी कम्युनिस्ट नेता की थी. वह जेएनयू से पढ़े-लिखे नेता थे.

वर्ष 2004 के चुनाव के बाद प्रकाश करात एक बडे़ नेता बनकर उभरे. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में बनी सरकार में वाम दल शामिल तो नहीं हुए लेकिन, माकपा के सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष बनाए गए. लेकिन, प्रकाश करात की माकपा का अड़ियल रुख मनमोहन सिंह के लिए कांटों भरी राह साबित हुई. रविवार को माकपा की एक अहम बैठक में प्रकाश करात, उनकी पत्नी वृंदा करात और अन्य कई वरिष्ठ नेताओं को सबसे ताकतवर पोलित ब्यूरो से बाहर कर दिया गया. माकपा ने पोलित ब्यूरो सदस्य मरियम एलेक्जेंडर बेबी को नया महासचिव बनाया है.

आगामी पश्चिम बंगाल और केरल विधानसभा चुनावों से पहले कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) यानी CPI (M) ने संगठनात्मक स्तर पर बड़ा बदलाव किया है. तमिलनाडु के मदुरै में पार्टी की 24वीं कांग्रेस हुई, जिसमें सीनियर नेता मरियम अलेक्जेंडर बेबी को पार्टी का नया महासचिव चुना गया. यह फैसला पार्टी की चुनावी रणनीति और खोया जनाधार वापस पाने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है.

एमए बेबी का चुनाव ऐसे समय में हुआ है जब CPI (M) को पश्चिम बंगाल और केरल जैसे अहम राज्यों में अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करनी है. केरल में पार्टी सत्तारूढ़ वाम गठबंधन का नेतृत्व कर रही है, जबकि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (BJP) की मौजूदी के बीच सत्ता में वापसी की चुनौती है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, CPI (M) ने आठ नए नेताओं को भी पोलित ब्यूरो में जगह दी है, जबकि पार्टी के पुराने और प्रभावशाली चेहरे जैसे प्रकाश करात, वृंदा करात और माणिक सरकार को पोलित ब्यूरो से हटाकर केंद्रीय समिति में विशेष आमंत्रित सदस्य बनाया गया है. प्रकाश करात 2005 से 2015 तक CPI (M) के महासचिव रह चुके हैं. यह बदलाव पार्टी में नई सोच और युवा नेतृत्व को आगे लाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.

पार्टी के नए पोलित ब्यूरो में जिन आठ नए सदस्यों को शामिल किया गया है उनमें यू वासुकी, विजू कृष्णन, मरियम धवले, श्रीदीप भट्टाचार्य, अमरा राम और के बालकृष्णन जैसे नेता शामिल हैं. इन नए चेहरों से पार्टी को उम्मीद है कि वे जमीनी स्तर पर काम को और बेहतर ढंग से आगे बढ़ाएंगे. पोलित ब्यूरो का सदस्य बने रहने के लिए पार्टी के सीनियर लीडर और केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन को 75 साल की उम्र सीमा से छूट दी गई है. यह छूट उनके मुख्यमंत्री होने की वजह से दी गई है.

पार्टी के नए महासचिव एमए बेबी का राजनीतिक सफर काफी लंबा रहा है. उनका जन्म 5 अप्रैल 1954 को केरल के कोल्लम में हुआ था. एमए बेबी, पीएम अलेक्जेंडर और लिली अलेक्जेंडर के बेटे हैं. एनएसएस हाई स्कूल, प्रक्कुलम में पढ़ाई के दौरान ही उनकी राजनीति में दिलचस्पी शुरू हो गई. कोल्लम के एसएन कॉलेज में पढ़ते समय उन्होंने छात्र राजनीति में कदम रखा. बीए पॉलिटिकल साइंस का छात्र रहते हुए उन्होंने युवा आंदोलनों में भाग लिया. एमए बेबी, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) और डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (DYFI) के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने.

एमए बेबी 1986 से 1998 तक राज्यसभा सदस्य रहे. इसके बाद 2006 से 2016 तक वे केरल की कुंदरा सीट से विधायक रहे. 2006 से 2011 तक उन्होंने राज्य के शिक्षा और संस्कृति मंत्री की जिम्मेदारी संभाली. शिक्षा के क्षेत्र में उनके कार्यकाल को काफी याद किया जाता है. 2012 में एमए बेबी को पोलित ब्यूरो का सदस्य बनाया गया. यह पार्टी की सबसे पावरफुल बॉडी मानी जाती है. 2014 में वे कोल्लम से लोकसभा चुनाव लड़े थे लेकिन हार गए थे. अब वे महासचिव के तौर पर नई जिम्मेदारी निभाएंगे. एमए बेबी को राजनीति से इतर लिखने का भी शौक है. वे एक लेखक हैं, और उन्होंने नोम चोमस्की, युवा आंदोलन और शिक्षा समेत अलग-अलग विषयों पर किताबें लिखी हैं.

CPI (M) का यह बड़ा संगठनात्मक बदलाव उस समय आया है जब पार्टी देशभर में अपने खोते जनाधार को लेकर टेंशन में है. खासतौर पर पश्चिम बंगाल और केरल जैसे अहम राज्यों में अपना वजूद बचाने की कोशिश कर रही है. ऐसे में पार्टी के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए नई लीडरशिप को मैदान में उतारा गया है.

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