RAID; नगर निगम के ठेकेदार-अफसरों के 21 ठिकानों पर ED के छापे, 1.03 करोड़ बरामद, कई दस्तावेज जब्त
भोपाल/इंदौर, मध्यप्रदेश के 21 ठिकानों पर प्रवर्तन निदेशालय ने सोमवार सुबह से छापे मारे और 1 करोड़ तीन लाख रुपये नकद जब्त किए गए हैं. वहीं साढ़े 3 करोड़ की एफडीआर जब्त की गई है. सूत्रों ने बताया है कि अभी छापे की कार्रवाई जारी है और जब्त की गई रकम बढ़ सकती है. इसके साथ ही कई दस्तावेज, डिजिटल उपकरण जब्त कर लिए गए हैं. हालांकि ईडी की ओर से अभी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है. ईडी ने ऑडिट, अकाउंट्स विभाग के कर्मियों, अफसर, नगर निगम के कॉन्ट्रेक्टर्स, वेंडर्स और अन्य के ठिकानों पर छापे मारे हैं. यह कार्रवाई इंदौर नगर निगम में हुई गड़बड़ी से जुड़ी बताई गई है.
सूत्रों ने बताया कि इंदौर नगर निगम में हुए करोड़ों रुपए के फर्जी बिल घोटाले के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बड़े पैमाने पर छापेमारी की है. यह कार्रवाई इंदौर के आजाद नगर थाना क्षेत्र स्थित मदीना नगर में की गई, जहां ग्रीन कंट्रक्शन, किंग कंट्रक्शन और नीव कंट्रक्शन के मालिक मोहम्मद साजिद, मोहम्मद जाकिर, और मोहम्मद सिद्दीकी के घर पर छापे मारे गए. नगर निगम में अकाउंटेंट अनिल गर्ग के ठिकानों पर छापा मारा गया है. इसके साथ ही अभय राठौर और उसके सहयोगियों के घर-दफ्तरों पर रेड की गई है. बताया जा रहा है कि महालक्ष्मी नगर में कार्रवाई जारी है. वहीं ड्रेनेज घोटाले को लेकर छापा मारा गया है. यहां फर्जी बिल लगाकर करोड़ों का घोटाला सामने आया था.
बिना काम किए ही फर्जी बिल लगाकर बड़ी हेराफेरी
सूत्रों ने बताया कि बिना काम किए ही फर्जी बिल लगाकर बड़ी हेराफेरी की बात सामने आ गई है. यहां फर्जी बिल घोटाले के साथ ही ड्रेनेज घोटाले से जुड़े दस्तावेज, बैंक खातों की जानकारी और रकम के ट्रांजेक्शन आदि के संबंध में कई दस्तावेज बरामद किए गए हैं. ईडी की टीमों ने एक साथ कई ठिकानों पर सर्च अभियान चलाया और आरोपियों के ठिकानों से फाइलें, डिजिटल उपकरण, दस्तावेज आदि जब्त किए. इस घोटाले को लेकर सरकारी जांच पहले से ही चल रही थी, लेकिन कई अहम तथ्य सामने आने के बाद ईडी ने एक्शन लिया है. ऐसी उम्मीद है कि ईडी एक-दो दिन में इस कार्रवाई की जानकारी साझा करेगी.
यह है फर्जी बिल कांड
नगर निगम का फर्जी बिल कांड सबसे पहले उस वक्त सामने आया था जब तत्कालीन निगमायुक्त के सामने कुछ ठेकेदारों ने आरोप लगाया कि हमारा बिल पास नहीं हो रहा है जबकि कुछ ठेकेदार बगैर काम के भुगतान ले रहे हैं। इसके बाद मामले में जांच शुरू हुई। 16 अप्रैल 2024 को इस मामले में पहली एफआइआर दर्ज हुई। आरंभिक रूप से यह घोटाला सिर्फ 28 करोड़ का होने का अनुमान लगाया जा रहा था, लेकिन जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी घोटाले की राशि बढ़ती गई।