नई दिल्ली, एजेंसी, उच्च शिक्षा में नेतृत्व वाले पदों (कुलपतियों) की नियुक्ति की प्रक्रिया में बड़े बदलाव करते हुए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने सोमवार कोनए नियम जारी किये, जो राज्यों में राज्यपालों को कुलपतियों की नियुक्ति में व्यापक अधिकार प्रदान करते हैं तथा कहते हैं कि इस पद के लिए उद्योग विशेषज्ञों और सार्वजनिक क्षेत्र के दिग्गजों को चुना जा सकता है. इस प्रकार केवल शिक्षाविदों के चयन की परंपरा समाप्त हो गई है.
सरकारी सूत्रों के अनुसार, यदि इसे मंजूरी मिल जाती है, तो नए नियम कुलपतियों को कुलपति के चयन पर अधिक नियंत्रण प्रदान करेंगे. तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और केरल जैसे विपक्षी शासित राज्यों पर इसका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की संभावना है, जहां सरकार और राज्यपाल (जो राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति (चांसलर) के रूप में कार्य करते हैं) वर्तमान में शीर्ष शैक्षणिक नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर विवादों में उलझे हुए हैं.
नए मसौदा विनियमों– जिसका शीर्षक ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों और शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति और पदोन्नति के लिए न्यूनतम योग्यताएं और उच्च शिक्षा में मानकों के रखरखाव के लिए उपाय) विनियम, 2025’ है – ने अनुबंध शिक्षक नियुक्तियों पर लगी सीमा को भी हटा दिया है. 2018 के नियमों ने ऐसी नियुक्तियों को संस्थान के कुल फैकल्टी पदों के 10 प्रतिशत तक सीमित कर दिया था.
उच्च शिक्षा नियामक को मसौदे पर जनता की प्रतिक्रिया प्राप्त होने के बाद नए नियमों को अंतिम रूप दिया जाएगा. नए नियमों में कहा गया है, ‘कुलपति/विजिटर तीन विशेषज्ञों वाली खोज-सह-चयन समिति (Search-cum-Selection Committee) का गठन करेंगे.’ पहले, नियमों में उल्लेख किया गया था कि कुलपति के पद के लिए इस समिति द्वारा गठित 3-5 व्यक्तियों के पैनल द्वारा उचित पहचान के माध्यम से किया जाना चाहिए, लेकिन यह निर्दिष्ट नहीं किया गया था कि समिति का गठन कौन करेगा.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के कम से कम दो निर्णय ऐसे हैं, जो यूजीसी के नियमों को, विशेषकर शैक्षणिक नियुक्तियों से संबंधित नियमों को, राज्य विश्वविद्यालयों पर भी लागू करते हैं.
दूसरे शब्दों में, राज्यों के राज्यपाल जो राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति हैं, अब चयन प्रक्रिया पर अधिक नियंत्रण रखते हैं और कुलपति की नियुक्ति पर भी अंतिम निर्णय उन्हीं का होता है. मसौदा दिशा-निर्देशों में यह भी चेतावनी दी गई है कि कार्यान्वयन न करने पर किसी संस्थान को यूजीसी योजनाओं में भाग लेने या डिग्री कार्यक्रम प्रदान करने से रोका जा सकता है.
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘जब भी हम यूजीसी नियमों में संशोधन करते हैं, तो हम पिछले अनुभवों के आधार पर बदलाव करने की कोशिश करते हैं. जहां तक कुलपति नियुक्तियों का सवाल है, हमने चयन प्रक्रिया को यथासंभव स्पष्ट बनाने की कोशिश की है, ताकि अस्पष्टता की कोई गुंजाइश न रहे.’