राजनीति

BJP; ‘एक व्यक्ति एक पद’ फॉर्मूला लागू हुआ तो नितिन नबीन को छोड़ना पड़ेगा मंत्री पद!,भाजपा के सामने खड़ी होगी ये चुनौती

नईदिल्ली, बिहार के पटना जिले के बांकीपुर विधानसभा के विधायक और बिहार सरकार में पथ निर्माण और नगर विकास मंत्री नितिन नबीन को बीजेपी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। इसके साथ ही बिहार में बीजेपी की नीति ‘एक व्यक्ति-एक पद’ की चर्चा बढ़ गई है। इसके साथ-साथ इस बात की भी चर्चा हो रही है कि अगर नितिन नबीन ने मंत्री पद छोड़ा तो बिहार में बीजेपी के लिए एक नई चुनौती खड़ी हो जाएगी। 

नितिन नबीन पर बीजेपी को भरोसा क्यों?

पहले बात करते हैं नितिन नबीन की , जो बीजेपी के नए ‘बॉस’ बने हैं। दरअसल बिहार की राजनीति में नितिन नबीन ऐसा एक ऐसा चेहरा हैं, जिस पर बीजेपी ने जब भी भरोसा किया है, उस भरोसे पर वो खरे उतरे हैं। फिर बात चाहे छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव की हो या लोकसभा चुनाव में सिक्किम की जिम्मेदारी, बीजेपी ने उन्हें जिस मोर्च पर लगाया वहां नितिन नबीन ने भगवा परचम लहराया। इतना ही नहीं, बिहार में भी नितिन नबीन ने न सिर्फ अपनी सीट को संभाले रखा है, बल्कि पांच बार लगातार जीतकर पटना की बांकीपुर सीट को बीजेपी के ‘गढ़’ में तब्दील कर दिया है।

माना जा रहा है कि इसी के इनाम के तौर पर बीजेपी ने उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है, जिससे बीजेपी के सामने बिहार में एक नई चुनौती खड़ी हो सकती है।

बीजेपी में चल रहा ‘एक व्यक्ति एक पद’ का फॉर्मूला

बीजेपी में लंबे समय से ‘एक व्यक्ति-एक पद’ का सिद्धांत लागू है। इसी नीति के तहत जेपी नड्डा के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद उनके पार्टी अध्यक्ष पद को लेकर स्थिति स्पष्ट हुई थी। नड्डा का कार्यकाल लोकसभा चुनाव से पहले समाप्त हो चुका था, जिसे जून 2024 तक बढ़ाया गया। इसके बाद पार्टी नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की तलाश में थी, जो फिलहाल नितिन नबीन पर आकर पूरी हो गई है।

नितिन नबीन के मंत्री पद छोड़ने से दिलीप जायसवाल पर बनेगा दबाव

भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बने नितिन नबीन को बिहार सरकार में मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है। इसका असर सिर्फ सरकार तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि संगठन पर भी पड़ेगा। इसके साथ ही बिहार बीजेपी अध्यक्ष दिलीप जायसवाल पर भी दबाव बढ़ सकता है, क्योंकि वे वर्तमान में नीतीश सरकार में मंत्री होने के साथ-साथ प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं। ऐसे में उन्हें भी किसी एक पद को छोड़ना पड़ सकता है।

नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश बनी चुनौती

यदि दिलीप जायसवाल प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ते हैं, तो बीजेपी को बिहार में नया अध्यक्ष चुनना होगा। वरिष्ठ पत्रकार और बिहार की राजनीति के जानकार त्रिलोकी नाथ दुबे के अनुसार, इस प्रक्रिया में पार्टी पूरी तरह लोकतांत्रिक तरीका अपनाएगी। जिला स्तर से नामों का प्रस्ताव मंगाया जाएगा, फिर संगठन के भीतर विचार-विमर्श के बाद तीन नामों की सूची तैयार होगी। अंततः केंद्रीय नेतृत्व की रणनीति और प्राथमिकताओं के अनुरूप प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर अंतिम मुहर लगेगी।

कुल मिलाकर, नितिन नबीन की नई जिम्मेदारी बीजेपी के लिए सम्मान की बात है, लेकिन इसके साथ ही बिहार में संगठन और सरकार दोनों स्तरों पर संतुलन साधने की चुनौती भी खड़ी हो गई है। आने वाले दिनों में यह साफ होगा कि पार्टी ‘एक व्यक्ति-एक पद’ नीति को किस हद तक लागू करती है और बिहार बीजेपी को कौन नया नेतृत्व देता है।

अपनी पकड़ की छाप लगातार छोड़ी
नितिन लगातार क्षेत्र और संगठन में अपनी पकड़ की छाप लगातार छोड़ते आए हैं। मसलन जब लालू-नीतीश के साथ आने के बाद 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा औंधे मुंह गिरी, तब भी नितिन अपनी सीट से बड़ी अंतर से जीते। साल 2020 के चुनाव में जब कांटे की टक्कर हुई तब उन्होंने बॉलीवुड के दिग्गज शत्रुघ्न सिन्हा के पुत्र लव सिन्हा को 84000 से अधिक बड़े अंतर से हराया। बीते चुनाव में भी उन्होंने बाकीपुर सीट से करीब 52 हजार के अंतर से जीत दर्ज की। बिहार सरकार में तीन बार मंत्री पद संभालने के कारण उनके पास प्रशासन का भी अच्छा अनुभव है।

पीढ़ीगत बदलाव की ओर पहला कदम
वर्ष 2023…छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव…कांग्रेस से लेकर चुनावी विशेषज्ञों तक को पूरा भरोसा था कि सत्ता में भूपेश बघेल सरकार की फिर वापसी हो रही है। मगर, भाजपा के चुनाव प्रभारी रहे नितिन नबीन ने अपनी मेहनत और कार्यकर्ताओं में जोश भरकर पूरी बाजी ही पलट दी। नितिन तब 43 साल के थे, मगर उस कामयाबी की गूंज ने उन्हें दो साल में ही भाजपा के सबसे युवा राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचा दिया। 

युवा वोटरों पर फोकस
उनकी नियुक्ति को पार्टी में पीढ़ीगत बदलाव की शुरुआत माना जा रहा है। दरअसल, भाजपा के वर्तमान केंद्रीय नेतृत्व पर नजर डालें तो 50 वर्ष से कम उम्र का कोई नेता बड़े पद पर नहीं दिख रहा। जबकि कुछ वर्षों से पार्टी का फोकस युवा वोटरों पर रहा है। ऐसे में युवा नबीन को मौका देना पीढ़ीगत बदलाव की ओर पहला कदम है। अप्रैल 1980 में स्थापना के बाद 55 साल के अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। बाद में लालकृष्ण आडवाणी ने यह पद संभाला।

कब कौन बना भाजपा का अध्यक्ष?
अटल और आडवाणी की वैचारिक मजबूती ने भाजपा को नए शिखर पर पहुंचाया। अटल-आडवाणी का दौर करीब 25 साल तक रहा। इस दौरान मुरली मनोहर जोशी, वेंकैया नायडू जैसे दिग्गज भी अध्यक्ष बने। आडवाणी 77 वर्ष की उम्र में भी अध्यक्ष थे। अटल-आडवाणी के दौर के बाद 52 साल के नितिन गडकरी ने कमान संभाली, मगर कोई बड़ी चुनावी कामयाबी हासिल न कर सके। 2014 में 49 साल के अमित शाह ने पार्टी की कमान संभाली और देश में पहली बार भाजपा की पूर्ण बहुमत से सरकार बनी। शाह-मोदी की जोड़ी ने 10 साल में ऐसा करिश्मा दिखाया कि पूरा देश भगवामय हो गया। मगर, दिग्गज नेताओं की बढ़ती उम्र को देखते हुए युवा नेतृत्व बहुत जरूरी हो गया था।

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