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लागा चुनरी में दाग छुपाऊ कैसे?………….

पत्रकारिता के मायने बताते हुए एक बात बताई जाती थीं कि- रोचक समाचार क्या है? आदमी को कुत्ता काट ले ये समाचार है और आदमी ही कुत्ते को काट ले तो ये रोचक समाचार है। समय के साथ रोचक समाचारों के विषय बदलते जा रहे है।

आजकल के रोचक समाचारों में  उम्रदराज पुरुषो के ठगे जाने के होते है, वह भी स्त्रियों के द्वारा। आज भी एक समाचार आंखों के सामने से गुजरा। कोई रिटायर्ड” ( स्वाभाविक है 60 -62 साल पार ही होगा)  व्यक्ति सोशल मीडिया के माध्यम से किसी महिला के झांसे में आ गए।सवा लाख से उतर गए। अंततः पुलिस के शरण मे गए।

  ऐसी घटना बिना नागे के हो रही है और आगे भी होगी क्योंकि समाज मे विघटन का दौर जारी है। संयुक्त परिवार का चलन खत्म सा हो गया है। नब्बे के दशक में सेवा में आये पुरुष या तो रिटायर हो गए है या मुहाने पर है। एक दो संतान परंपरा के चलते  बच्चों का सर्विस में बाहर चले जाना अनिवार्य है। बड़े होते घर, छोटा होता परिवार, सामाजिक मेल जोल का अभाव, दोस्त यार के न होने के चलते अंततः एक माध्यम समय काटने का शेष बच जाता है वह है- मोबाइल फोन में उपलब्ध सुविधाओं का उपयोग या दुरुपयोग करना।

 विज्ञान एक चाकू के समान है जिससे फल भी काटे जा सकते है और आदमी भी। ज्ञान का अथाह भंडार है तो  बुराइयों की भी जखीरा है। सोशल मीडिया के रूप में अंजान व्यक्तियों से संपर्क करने के लिए फेसबुक, मैसेंजर औऱ व्हाट्सएप है। पुरुष, खासकर  उम्र के ढलान पर लुढ़कता हुआ शायद बिना ब्रेक का हो जाता है। कुछ पुरुषो को स्वयं को पुरुष ,वह भी शारीरिक रूप से सक्षम मानने के मुग़लता के चलते उटपटांग हरकतों को आमंत्रित करना फैशन बनते जा रहा है।  इस कार्य के लिए एक महिला की अनिवार्य आवश्यकता ही पुरुषो को सोशल मीडिया में ऐसे जगह पर ले जाती है जहां वे ललचाये जाते है।

अनेक ऐसे एप्प है जिनमे  महिलाओं से मित्रता, नए संदर्भ में Dating, ओर न जाने क्या क्या संबंध बनाने के ऑफर होते है। एकाकी जीवन मे खुद को ढकेलने वाले या ढकलाये लोग मोबाइल में घुमन्तु प्राणी बन जाते है। सोशल प्लेटफार्म में  खोजी  हो जाते है। ढूंढो तो भगवान मिलते है फिर बाकी लोग कहा लगते है।

सोशल प्लेटफार्म में संगठित गिरोह हुआ करते है जिनका संचालन पुरुष करते है। इन गिरोह में स्त्रियां भी हुआ करती है। इनका काम सोशल प्लेटफार्म में लार बहाने वाले लोगो को आकर्षित करना होता है। जो आकर्षित हो गया उसे लालच औऱ प्रलोभन के साथ उसके पुरुषार्थ को भी ललकारा जाता है। इसी प्रक्रिया में वस्त्र हरण की भी अग्रिम प्रक्रिया होती है। आगे ब्लैकमेल परिणाम होता है और लोक से लज्जा बचाने के लिए सिवाय मांगी गई राशि का भुगतान ही शेष बच जाता है। एक समय के बाद जब राशि भुगतान संशय में ला खड़ा करती है तब कानून का ही राह पकड़ा जाना विवशता हो जाती है। ये बाते सार्वजनिक होने पर  स्वयं के चरित्र का हरण भी होते दिखता है क्योंकि पुरुषो के बारे में आम धारणा है कि वह  लंपट होता है। चरित्र को तभी तक ओढ़ा रहता है जब तक मौका नही मिलता है। नज़र हटी औऱ दुर्घटना घटी ये चरितार्थ होते दिखता है।

 ऐसे झांसों के बारे में पुलिस सचेत करती है, समाचार पत्र खबरदार करते है।स्वयं का भी मस्तिष्क अलर्ट करता है। इसके बावजूद सवा लाख से लोग उतर जाते है। आज की स्थिति में जब सामाजिक, पारिवारिक एकाकीपन सबको डस चुका है तब एक उम्र के बाद व्यक्ति को सामाजिक परिवेश से ज्यादा चिंता केवल परिवार की होती है। ऐसी घटनाएं आपको हास्यास्पद स्थिति में खड़ा कर सकता है। अपने जवां होने के उम्र में की गई नादानियां बुढ़ापे में स्वीकार नही हो पाएगी।

 सोशल प्लेटफार्म में   पुरुष  वर्ग अज्ञात  स्त्रियों से परहेज करें।  मित्रता के लिए विदुषी स्त्रियां भी है  उनसे मित्रता करे। मनाही नहीं है लेकिन इतनी हिम्मत जरूर करे कि घर की माँ, पत्नी, बेटी को  गर्व से बता सके कि लैंगिक भेद के बावजूद किसी स्त्री से आपकी मित्रता शालीन है, सभ्य है, सांस्कारिक है।

स्तंभकार- संजयदुबे

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