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बोले चूड़ियां बोले कंगना……………

चूड़ी और कंगन महिलाओ के  हाथो के श्रृंगार की दो  सुंदर प्रसाधन सामग्री  है। आमतौर पर चूड़ियां पतली होती है और कंगन मोटे होते है। कंगन को आमतौर पर महिलाएं चूड़ियों को बीच में रख कर ब्रेकैट के रूप में पहनती है। एक कहावत भी है कि चूड़ियां बोला भी करती है  और कंगना भी बोला करती है किसकी बातों में दम है ये महिलाएं ही जानती है। इन दिनों राजनीति में भी महिलाओ के बीच बोला बोली चल रही है। एक तरफ  कांग्रेस की चूड़ियां बोल रही है तो दूसरी तरफ भाजपा की कंगना बोल रही है।

 Every thing is fair in love and war than poltics याने युद्ध,प्यार और राजनीति में सब जायज है। इसका जीता जागता उदाहरण भाजपा की कंगना को लेकर कांग्रेस की सुप्रिया श्रीनेत के ट्वीटर अकाउंट से डिलीट की गई भद्दी टिप्पणी है।  इस प्रकार के सोशल मीडिया पर  युद्ध से एक बात और भी स्पष्ट होती है कि महिलाओ के दुश्मन पुरुषो से ज्यादा दुश्मन महिलाए भी है। आधी आबादी में इस बात का गुरेज नहीं है कि भले ही पार्टी कोई भी हो अगर महिलाओं को प्रतिनिधित्व के लिए अवसर मिला है तो कम से कम बातों में परहेज रखा जाए। शिष्टता रखा जाए।

 समाज का फिल्मों की नायिकाओं में कुछेक को छोड़कर आम धारणा नेक नही है। अनेक  नायकों की नायिका बनने  के चलते साधारण तबका ये मान कर परिकल्पना करने की आजादी ले लेता है कि नायिकाओं का चरित्र  संदेहास्पद होता है। इसके बावजूद इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि फिल्मों में काम करने का अर्थ किसी के चरित्र पर बिना जाने बुझे आरोप जड़ दिए जाए।अफवाहों की दुनियां में तैरती बाते जब हकीकत का रूप लेती है तो समाज इस बात की पुष्टि भी करता है कि ये तो होना ही था। फिल्मों की सफलता के लिए नायक नायिकाओं के बीच प्रेम पनपाना सुनियोजित योजना होती है। दर्शक इस केमेस्ट्री को समझने के लिए थियेटर पहुंचते है।

मंडी लोकसभा की भाजपा प्रत्याशी कंगना  भी जब घरबार छोड़ कर मुंबई पहुंची थी थी संघर्ष के दिनों में  उन्हें क्या समझौते करने पड़े थे  इसका सच केवल कंगना ही जानती है। अफवाह की दुनियां में आदित्य पंचोली और ऋतिक रोशन के अलावा करण जौहर के शो में बेबाकी ने  कंगना के बोल को उनके सामर्थ्य से अधिक माना था। कंगना के चरित्र हनन के सारे अवसर तलाशे गए। कंगना को फिल्म में मौका न देने का भी षड्यंत्र हुआ।  अपनी बेबाकी का खामियाजा भुगतने के बजाय कंगना ने विकल्प खोजे और  उन्होंने मणिकर्णिका जैसी फिल्म बना कर बॉलीवुड माफिया के खिलाफ शंखनाद करके बता दिया कि कंगना को कमजोर समझना गलत बात होगी। कंगना ने अपने को सुरक्षित करने के लिए राजनीति का सहारा लिया और हार्डकोर  टिप्पणी के जरिए मोदी और भाजपा के समर्थन में खड़ी हो गई।  उद्धव ठाकरे की सरकार ने प्रतिशोध की राजनीति के रास्ते बनाए।कंगना का घर तोड़ा और  स्थिति ये ला दी थी कि केंद्र सरकार को कंगना को सुरक्षा देना पड़ गया।

राजनीति का अपना एक लोचा है कि अगर आप एक के पक्ष में खड़े होंगे तो समूचा विपक्ष आपकी घेरेबंदी में उतर जायेगा।   राजनीति में महाभारत जैसा सिद्धांत भी नही है कि रथी से रथी और महारथी से महारथी लड़ेगा। यहां कौरव सेना के योद्धा अभिमन्यु को मारने के लिए सारे छल प्रपंच कर सकते है। कंगना को मंडी से टिकट मिलते ही गैर भाजपा पार्टियां  स्तरहीन टिप्पणी करने के लिए सोसल मीडिया में उतर गई। जो टिप्पणी की गई उनका उल्लेख करना वाजिब नहीं है लेकिन जिस तरह से कांग्रेस की सुप्रिया श्रीनेत के अकाउंट में लिखा गया वह एक महिला का दूसरे महिला के प्रति दृष्टिकोण को सामने लाता है।

    राजनीति में जीत हार का निर्णय मतदाता करते है। कंगना को मंडी के मतदाता चुनते है या नहीं चुनते है ये 4जून को पता चलेगा लेकिन एक महिला के प्रति  विपक्ष के नेताओ नेत्रियों की भाषा कैसी हो ये आधी आबादी के लिए विचार का विषय है।  हमारे देश में स्त्रियों के पार्टी  धारणा  के  लिए  मैथिली शरण गुप्त ने लिखा था हाय अबला जीवन तेरी यही कहानी आंचल में दूध आंखो में है पानी  इसके पलट मेरा लिखना है  कि हाय पुरुष जीवन तेरी यही कहानी नाक के नीचे मूंछ ,मुंह में पानी लेकिन राजनीति में महिलाओ के प्रति महिलाओ का नजरिया सोचनीय है। बोल रही है चूड़ियां बोल रही है कंगना।

स्तंभकार-संजय दुबे

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