Odisha CM; ओडिशा में किसके सिर पर होगा ताज ? इस नाम की चर्चा सबसे तेज, रह चुके हैं गुजरात कैडर के IAS
0 जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल गिरीश मुर्मु, केवी सिंह देव के नाम की चर्चा,ओडिशा के भाजपा नेता दिल्ली पहुंचे
भुवनेश्वर, ओडिशा में भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के लिए कौन चुना जाएगा?, इस बारे में अटकलों के बीच पार्टी के अंदर इस दिशा में कवायद तेज हो गई है। सीएम पद के लिए एक नौकरशाह के अलावा पाटनागढ राजपरिवार का नाम काफी आगे है। बहरहाल राज्य भाजपा के दिग्गज नेता चर्चा के लिए दिल्ली पहुंच गए हैं। बता दें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी रैली के दौरान घोषणा की थी कि भाजपा का मुख्यमंत्री 10 जून को ओडिशा में उडिया भाषा में शपथ लेगा।
ऐसे में भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पूर्व कैग और जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल गिरीश मुर्मु के साथ कुछ नवनिर्वाचित विधायकों के नामों की चर्चा है। गिरिश मुर्मु के नाम की राष्ट्रीय मीडिया में व्यापक रूप से चर्चा हो रही है। 1985 बैच के गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी मुर्मु, नरेंद्र मोदी के करीबी हैं। मुर्मु ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान प्रधान सचिव के रूप में कार्य किया है। जब अमित शाह गृह मंत्री थे तब वह गृह विभाग के संयुक्त सचिव भी थे। भाजपा मुर्मु को ओडिशा का मुख्यमंत्री बनाकर आदिवासी कार्ड खेल सकती है।
दूसरी और उडीसा में बीजेडी के नेता फाइव टी. वी के पांडियन की अफसरशाही के चलते बीजेडी की मौजूदा हालत को देखते हुए सीएम पद पर किसी अफसर का नाम लेने से पार्टी कार्यकर्ता कांप जाते है। ऐसे में गिरीश मुर्मू के नाम पर सहमति बन पाएगी, इसमेंं संदेह है, क्योंकि दर्जन भर से ज्यादा नव निर्वाचित विधायक ऐसे है जो अफसरशाही के चलते बीजेडी छोडकर भाजपा में आए और चुनाव जीते है। इसके अलावा उडीसा में आदिवासी सीएम का प्रयोग भी असफल हो चुका है। कांग्रेस ने यह प्रयोग किया था।
सीएम पद के दूसरे प्रबल दावेदार के रुप में ओडिशा भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और पाटनागढ़ राजपरिवार के सदस्य विधायक केवी सिंह देव का नाम भी सुर्खियों में है। उनके परिवार से आर एन सिंंहदेव उडीसा के सीएम रह चुके है। कनकवर्धन सिंहदेव के पिता भी सांसद रहे है। उनकी पत्नी भी सांंसद है। केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी इस परिवार की भागीदारी रही है।
कनक वर्धन सिंह देव पटना रियासत बलांगीर के तत्कालीन राजघराने से ताल्लुक रखते हैं । वे ओडिशा सरकार में कैबिनेट मंत्री और भाजपा ओडिशा इकाई के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष थे। सिंहदेव 2000 से 2004 तक उद्योग और सार्वजनिक उद्यम के कैबिनेट मंत्री थे और 2004 से 2009 तक, वे नवीन पटनायक सरकार में शहरी विकास और सार्वजनिक उद्यम के कैबिनेट मंत्री थे।
यहां बता दें मौजूदा विधान सभा चुनाव में पश्चिम उडीसा से करीब दो दर्जन भाजपा विधायक चुनकर आए है, तथा छत्तीसगढ से लगा यह इलाका भाजपा का गढ रहा है। अभी पश्चिम उडीसा के काटाबांजी विधानसभा क्षेत्र से मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी चुनाव हार गए है। बहरहाल भाजपा के नेता चर्चा के लिए नई दिल्ली पहुंच गए हैं। भाजपा के नए मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण 10 जून को हो सकता है।
इन नेताओं के नाम भी चर्चा में
जिन अन्य नेताओं के नाम सीएम पद के लिए कयास लगाए जा रहे हैं, उनमें संबलपुर के नवनिर्वाचित विधायक जयनारायण मिश्रा, ब्रजराजनगर से नवनिर्वाचित विधायक सुरेश पुजारी और केंदुझर से नवनिर्वाचित विधायक मोहन माझी शामिल हैं। जयनारायण मिश्रा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि ओडिशा का एक बेटा ओडिशा का मुख्यमंत्री होगा। यह फैसला भाजपा विधायक दल पर निर्भर करेगा और पार्टी का संसदीय बोर्ड अपनी मंजूरी देगा।
ये हैं नवीन पटनायक को हराने वाले लक्ष्मण बाग
उडीसा की जिस सीट की अब भी लोग खूब चर्चा कर रहे हैं। इनमें से एक विधानसभा की सीट है कांटाबांजी, जहां से खुद बीजद सुप्रीमो नवीन पटनायक चुनाव हार गए हैं। इस सीट के नतीजों ने सभी को हैरान कर दिया। नवीन ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वह वहां से हार जाएंगे। वह भी एक ऐसे उम्मीदवार लक्ष्मण बाग से जिसे उस क्षेत्र या जिला या कुछ आस-पास जिलों को छोड़ दें तो उन्हें कोई जानता भी नहीं होगा। हालांकि, वह पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन कांटाबांजी के सबसे बड़े नेताओं में से एक और कांग्रेस के पूर्व विधायक संतोष सिंह सलूजा की तरह उन्हें पूरे राज्य में नहीं जाना जाता था। हालांकि, अब लक्ष्मण बाग पूरे राज्य में एक जाना-माना नाम हो गया है। हर कोई उनके बारे में जानना चाहता है।उन्होंने बीजद अध्यक्ष नवीन पटनायक को हराया, जो 24 साल से अधिक समय से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे।
लक्ष्मण बाग के गांव का नाम खुटुलुमुंडा है। यह गांव बलांगीर जिले के तुरेईकेला ब्लॉक के हिआल पंचायत में है।लक्ष्मण, खुटुलुमुंडा गांव के दिवंगत शंकर बाग के छह बेटों में सबसे छोटे हैं।लक्ष्मण के दो भाइयों का निधन हो चुका है।अब उनके चार भाई हैं। लक्ष्मण के पिता शंकर बाग किसान थे। उनके बेटे भी खेती का काम कर रहे हैं। वे खेती के साथ-साथ राजनीति भी करते हैं। लक्ष्मण के भाइयों ने विभिन्न पंचायतों से चुनाव लड़ा और सरपंच और समिति के सदस्य बने।उनकी एक भाभी ब्लॉक अध्यक्ष भी थीं। लेकिन राजनीति में काफी सक्रिय लक्ष्मण बाग ने सीधे विधानसभा चुनाव लड़ा।